चिकित्सा देश की रीढ़

यह भारत देश नित्य निरंतर विकास के पथ पर एक नये उत्साह नवीन ऊर्जा के साथ बढ़ रहा है इसमें कोई संशय नहीं की आने वाले वर्षों में विश्व का प्रतिनिधित्व करेगा।

हमारे देश की चिकत्सा व्यवस्था एवं औषधि उद्योग का विश्व ने लोहा मना है कोरोना काल में औषधीय मदद हो या टीका करण हमारा देश “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” के सूत्र को अपनाया है।

आयुष के क्षेत्र में आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति ने भी मुश्किल समय में सब का साथ दिया जीर्ण रोग हो या मानसिक रोग हो अनेक ऐसे-एसे रोग जिनका की ठीक होना असंभव है इन चिकित्सा पद्धतियों ने आशा की एक नई लकीर खींची है ।

योग-व्यायाम का आज पूरा विश्व भारत का अनुशरण कर रहा है वहीं होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति बिना किसी दुष्प्रभाव के लोगों की दिन प्रतिदिन विश्वाश का प्रतीक बन रही है और भारत में लगभग दो लाख चिकत्सक अपनी सेवाएं दे रहे हैं

चिकित्सा देश के रीढ़ की हड्डी होती है भारत सरकार एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ आयुष पद्धतियों को भी बढ़वा दे रही है जिसका परिणाम हमारे सामने है आपातकालीन स्थिति में एलोपैथिक चिकित्सा एवं जीर्ण रोगों में आयुष पद्धतियों को अपना कर हम अपने देश की चिकित्सा व्यवस्था को और मजबूत कर सकते हैं ।

इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति एवं देश के चिकित्सकों को भरपूर आश और विश्वाश के साथ काम करने की आवश्यकता है दिन-प्रतिदिन नये-नये रोगों का प्रकोप बढ़ रहा इसका कारण है हमारी अव्यवस्थित दिनचर्या एवं खान पान चिकित्सकों के सलाह के बिना दवाइयाँ लेना जीवन को शरीरिक एवं मानसिक रूप से जीने के लिए आरोग्यता सबसे जरूरी है ।

कहा भी जाता है “पहला सुख निरोगी काया” अतः हमारा दायित्व है की हम अपने देश अपने राष्ट्र अपने परिवार के हित के लिए स्वयं आगे बढें और देश के प्रगति में अपना सहयोग दें।

डॉक्टर साहब का संघर्ष

आनंद त्रिपाठी “आतुर “

(मऊगंज म. प्र.)

यह भी पढ़ें:-

शांति रूपी धन

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *