इन दिनों मैंने पढ़ा
यादें
अजीब है मनुष्य की प्रकृति ।जो हमारे पास है उसका हमें आभास तक नहीं होता और वही चीज कुछ दिनों के लिए हमसे दूर हो जाए तो उसकी याद सताती हैं ।हम उसके लिए व्याकुल हो जाते हैं।
यह पुस्तक मुरारी लाल शर्मा जी ने अपनी धर्मपत्नी की याद में लिखा है। इसमें उन्होंने पूरी ईमानदारी बरती है। वह लिखते हैं-” जब मुझे उसकी याद आती है तो उस समय मेरी स्थिति मेले में खोए उस छोटे बच्चों जैसी होती है जिसका रो-रो कर बुरा हाल है।
उसे अपने चारों ओर सब दिखते हैं बस वह नहीं दिखता जिसकी तलाश में वह व्याकुल हुआ फिर रहा है।”
एक अन्य जगह वह लिखते हैं-” वह मेरे लिए एक ऐसी शून्य थी जो मेरे पीछे लगते ही मेरी ताकत को कई गुना बढ़ा देती थी। मेरे अलावा इस शून्य की कीमत को कोई और नहीं समझ सकता।”
सच में जब तक हम जीवनसाथी के साथ होते हैं तो उसकी कीमत का कभी आभास नहीं होता। आज मोबाइल के जमाने में एक दूसरे की भावनाओं को हम उतना नहीं समझ पाते हैं जितना पत्र में लिखे शब्दों से समझा जाता रहा है। जिन बच्चों ने कभी पत्र ना लिखा हो उन्हें पत्रों की कीमत क्या होती है नहीं समझ सकते हैं।
उनकी पत्नी एक पत्र में उनके लिए लिखती हैं -“किसी बात पर भी आप बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं ऐसा मत किया करो। हो सकता है दूसरे की भी कोई मजबूरी हो । आप हमेशा प्रसन्न रहकर मेरे ऊपर मेंहरबानी किया करो ।आप बहुत अच्छे हो बस गुस्सा मत किया करो।”
यह पत्र एक प्रकार से दो पवित्र आत्माओं का मिलन है।
मुरारी लाल जी अपनी पत्नी मालती जी के लिए लिखते हैं-
कल हमारे पास थे तुम , आज हमसे दूर हो ,
सच बताओ , ऐ सनम ! कब तक रहोगी दूर हमसे ।
मन तुम्हारी याद में, अब मन लगाकर जल रहा है ,
सेज कांटे बन गई है, कब झड़ेंगे पुष्प इससे।
एक जगह पत्र में वह लिखते हैं –
खैर माला मरने तो दुनिया को.. तुम जरा एक बार मुस्कुरा दो..
कभी-कभी लगता है उनकी पत्नी जी वाक्य में अशुद्धि कर दिया करती थी। जिसको शुद्ध करने के लिए वे लिखते हैं —
तुमने एक वाक्य लिखा है “पत्र आवश्यक डालना” जबकि तुमको लिखना चाहिए था “पत्र अवश्य डालना” आवश्यक की जगह अवश्य लिखना चाहिए।
२- नही – नहीं। ३- पहुचाने – पहुंचाने।४- करे – करें। ५- एकेले- अकेले। ६- पसन्न – पसन्द। खैर बहुत गलती करती हो जरा आराम से लिखा करो।
इन पत्रों में ऐसा लगता है जैसे संपूर्ण प्रेम उमड़ पड़ा हो।
वे लिखते हैं-
जिसके पत्रों से प्रेरित होकर ‘यादें’ लिखी
आज जो स्वयं एक याद बनकर रह गई।
पिएं आंख के अश्रु तुम्हारे जाने पर ,
हुई हृदय की हार तुम्हारे जाने पर।
चुभते तो शायद सह जाता मैं ,
गढ़े हृदय में फूल तुम्हारे जाने पर।
जीवन की उलझी राहों में मीत मेरे ,
व्यर्थ लगा संसार तुम्हारे जाने पर।
इस संसार से एक न एक दिन प्रत्येक व्यक्ति को जाना पड़ता है। मृत्यु एक अटल सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। व्यक्ति के जाने के बाद बस यादें ही उसकी रह जाती हैं। मुरारी लाल जी द्वारा रचित अपनी पत्नी मालती जी के यादों को संजोए हुए यह अद्भुत ग्रंथ साहित्य जगत के लिए एक अनमोल रतन के समान है । इसको रच कर उन्होंने अपनी पत्नी को अमर कर दिया।
स्पिरिचुअल एनाटॉमी
यह पुस्तक मुख्य रूप से हमारी आध्यात्मिक यात्रा में चक्र को सक्रिय रूप से व्यस्त रखने का एक अवसर प्रदान करती है।
अधिकांश व्यक्तियों कि यह जिज्ञासा होती है कि इस आधुनिक जीवन में रहकर हम अपने उद्देश्य को कैसे प्राप्त करें?
ऐसे स्पिरिचुअल एनाटॉमी नामक पुस्तक के माध्यम से दाजी जो इसके लेखक हैं मानव के खंडित जीवन को जोड़कर हमारे लिए उच्चतम सामर्थ्य को प्राप्त करने का एक मार्ग प्रस्तुत करते हैं ।
वह हमें यह भी याद दिलाते हैं कि उन्नत चेतना का मार्ग हमेशा हृदय से आरंभ होता है। दीपक चोपड़ा नामक लेखक कहते हैं-” असाधारण… स्पिरिचुअल एनाटॉमी योग दर्शन के ज्ञान और आपकी अनन्त सामर्थ्य को प्रकट करने वाली व्यावहारिक विधियों का मिश्रण है।”
मुख्य रूप से यह पुस्तक आध्यात्मिक रूपांतरण के लिए एक मार्गदर्शक की भांति है।
अनसुनी कहानियां
यह कहानी संग्रह प्रोफेसर सुशील राकेश द्वारा संपादित हैं। इस संग्रह के अधिकांश कहानी कोरोना काल में बेघर हुए लोगों के दर्द पर आधारित है।
किस प्रकार से कोरोना ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया ऐसे विषयों को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्त किया है। इस संग्रह में हमारी तीन कहानियां अंधश्रद्धा, शुभ अशुभ और मुहूर्तवाद है।
यह सभी कहानियां समाज में व्याप्त अंधविश्वासों पर आधारित है। कहानी ही वह विधा है जिसके माध्यम से हम समाज के विदुप्रताओं को सहजता से अभिव्यक्त कर सकते हैं। कहानी पढ़ने वालों के लिए एवं बच्चों के लिए भी यह एक सुंदर कहानी संकलन है।
सबसे प्यारी मेरी मां
यह संकलन मां के जीवन पर आधारित संपादक सौरभ पांडे द्वारा संपादित है। इसमें लगभग सैकड़ो लोगों ने मां के जीवन के प्रति अपने भावों को अभिव्यक्त किया है।
मां दुनिया का सबसे पावन शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड स्पंदित हो उठता है। इसकी दिव्यता में प्रेम, त्याग ,ममता और समर्पण का अद्भुत समावेश होता है जो मां को सागर से गहरा और आकाश से भी ऊंचा बना देता है।
अक्सर जीवन में जब तक हमारे मां-बाप होते हैं तब तक हम उनकी इज्जत करना नहीं समझते। उनके ना रहने पर ही उनका अभाव हमारे जीवन को अंदर से उद्वेलित करता है।
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है इसलिए लोगों को चाहिए कि अपने माता-पिता के जीवित रहते उनकी सेवा सत्कार में कोई कमी ना रखें। जीवित माता-पिता की सेवा करना ही सच्ची श्राद्ध है। यह एक बहुत सुंदर संकलन।
वह अद्भुत हैं
यह पुस्तक वी के सोमकुमार द्वारा रचित पी राजगोपालाचारी के यात्रा वृत्तांत पर आधारित है। इस पुस्तक में कोई सद्गुरु कैसे अपने सामान्य जीवन के माध्यम से अपने शिष्यों के प्रति संवेदनशील होता है जैसे विषयों को बहुत ही सहजता के साथ अभिव्यक्त किया गया है।
पुस्तक में अपने सद्गुरु के साथ दुनिया भर की यात्राओं में जिन-जिन आध्यात्मिक मोतियों को बटोरा उन्हें पिरोकर प्रस्तुत किया है। इसे पढ़कर यह अंतर कर पाना कठिन है कि वह आध्यात्मिक जीवन की चर्चा कर रहे हैं कि भौतिक जीवन की। असल में भौतिकता एवं आध्यात्मिकता दोनों अस्तित्व एक हो जाते हैं।
यह व्यवहारिक जीवन में उपयोगी होने के साथ-साथ दिव्यता की ओर कदम बढ़ाकर अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इसका सरल विवेचन लेखक ने पुस्तक में किया है।
हम महान पुरुषों के बारे में बहुत से पढ़ते एवं जानते हैं लेकिन सामान्य जीवन में वे किस प्रकार से संवेदनशील होते हैं इसे हमें बहुत कम जानकारी होती है उसकी पूर्ति यह पुस्तक करती है।
द हार्टफुलनेस वे
( The Heartfulness Way )
यह पुस्तक आध्यात्मिक रूपांतरण के लिए हृदय आधारित ध्यान के जिज्ञासुओं के लिए एक उत्तम पुस्तक है। यह पुस्तक कमलेश डी पटेल (दाजी) एवं जोशुआ पोलाक के आध्यात्मिक वार्ता पर आधारित है।
यह ध्यान को समझने की सबसे सरल पुस्तक है। इसमें ध्यान के रहस्याओं का बहुत ही सरलता के साथ प्रकटन किया गया है। ध्यान कब और कहां करें? ध्यान के आसन ? रिलैक्सेशन ?ध्यान कैसे करें?
ध्यान कितनी देर करें? जैसे विषयों को बहुत सरलता से समझाया गया है? इसके अलावा हमारे आत्मा में पड़े कुसंस्कारों की सफाई किस प्रकार से करें तथा जीवन में गुरु की क्या भूमिका होती है इत्यादि विषयों को शामिल किया गया है।
मैंने बहुत सी ध्यान की पुस्तकें पढ़ी लेकिन ध्यान को समझने के लिए इससे अच्छी पुस्तक दूसरी कोई नहीं मिली। साथ ही यह पुस्तक सहज मार्ग के सिद्धांतों को बहुत सरलता के साथ अभिव्यक्त करती है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
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