The Heartfulness Way

इन दिनों मैंने पढ़ा

यादें

अजीब है मनुष्य की प्रकृति ।जो हमारे पास है उसका हमें आभास तक नहीं होता और वही चीज कुछ दिनों के लिए हमसे दूर हो जाए तो उसकी याद सताती हैं ।हम उसके लिए व्याकुल हो जाते हैं।

यह पुस्तक मुरारी लाल शर्मा जी ने अपनी धर्मपत्नी की याद में लिखा है। इसमें उन्होंने पूरी ईमानदारी बरती है। वह लिखते हैं-” जब मुझे उसकी याद आती है तो उस समय मेरी स्थिति मेले में खोए उस छोटे बच्चों जैसी होती है जिसका रो-रो कर बुरा हाल है। उसे अपने चारों ओर सब दिखते हैं बस वह नहीं दिखता जिसकी तलाश में वह व्याकुल हुआ फिर रहा है।”

एक अन्य जगह वह लिखते हैं-” वह मेरे लिए एक ऐसी शून्य थी जो मेरे पीछे लगते ही मेरी ताकत को कई गुना बढ़ा देती थी। मेरे अलावा इस शून्य की कीमत को कोई और नहीं समझ सकता।”

सच में जब तक हम जीवनसाथी के साथ होते हैं तो उसकी कीमत का कभी आभास नहीं होता।
आज मोबाइल के जमाने में एक दूसरे की भावनाओं को हम उतना नहीं समझ पाते हैं जितना पत्र में लिखे शब्दों से समझा जाता रहा है।

जिन बच्चों ने कभी पत्र ना लिखा हो उन्हें पत्रों की कीमत क्या होती है नहीं समझ सकते हैं।
उनकी पत्नी एक पत्र में उनके लिए लिखती हैं -“किसी बात पर भी आप बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं ऐसा मत किया करो। हो सकता है दूसरे की भी कोई मजबूरी हो । आप हमेशा प्रसन्न रहकर मेरे ऊपर मेंहरबानी किया करो ।आप बहुत अच्छे हो बस गुस्सा मत किया करो।”
यह पत्र एक प्रकार से दो पवित्र आत्माओं का मिलन है।
मुरारी लाल जी अपनी पत्नी मालती जी के लिए लिखते हैं-
कल हमारे पास थे तुम , आज हमसे दूर हो ,
सच बताओ , ऐ सनम ! कब तक रहोगी दूर हमसे ।
मन तुम्हारी याद में, अब मन लगाकर जल रहा है ,
सेज कांटे बन गई है, कब झड़ेंगे पुष्प इससे।

एक जगह पत्र में वह लिखते हैं –
खैर माला मरने तो दुनिया को.. तुम जरा एक बार मुस्कुरा दो..

कभी-कभी लगता है उनकी पत्नी जी वाक्य में अशुद्धि कर दिया करती थी। जिसको शुद्ध करने के लिए वे लिखते हैं —
तुमने एक वाक्य लिखा है “पत्र आवश्यक डालना” जबकि तुमको लिखना चाहिए था “पत्र अवश्य डालना” आवश्यक की जगह अवश्य लिखना चाहिए।
२- नही – नहीं। ३- पहुचाने – पहुंचाने।४- करे – करें। ५- एकेले- अकेले। ६- पसन्न – पसन्द। खैर बहुत गलती करती हो जरा आराम से लिखा करो।
इन पत्रों में ऐसा लगता है जैसे संपूर्ण प्रेम उमड़ पड़ा हो।
वे लिखते हैं-
जिसके पत्रों से प्रेरित होकर ‘यादें’ लिखी
आज जो स्वयं एक याद बनकर रह गई।
पिएं आंख के अश्रु तुम्हारे जाने पर ,
हुई हृदय की हार तुम्हारे जाने पर।
चुभते तो शायद सह जाता मैं ,
गढ़े हृदय में फूल तुम्हारे जाने पर।
जीवन की उलझी राहों में मीत मेरे ,
व्यर्थ लगा संसार तुम्हारे जाने पर।

इस संसार से एक न एक दिन प्रत्येक व्यक्ति को जाना पड़ता है। मृत्यु एक अटल सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। व्यक्ति के जाने के बाद बस यादें ही उसकी रह जाती हैं। मुरारी लाल जी द्वारा रचित अपनी पत्नी मालती जी के यादों को संजोए हुए यह अद्भुत ग्रंथ साहित्य जगत के लिए एक अनमोल रतन के समान है । इसको रच कर उन्होंने अपनी पत्नी को अमर कर दिया।

भूत प्रेत रहस्य

यह पुस्तक भूत प्रेत के नाम पर समाज में व्याप्त भ्रांतियां का पूर्णतया वैदिक रीति से निराकरण करती है। लेखक डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद आर्य क्योंकि आर्य समाजी है इसलिए पौराणिक रूप से भूत प्रेत की मान्यताओं का तथ्यों प्रमाणों के द्वारा पूर्णता खंडन किया है।

जिन्हें यह जिज्ञासा हो कि भूत प्रेत होते हैं कि नहीहैंभूत प्रेत कैसे बनते हैं? वेद पुराण उपनिषद गीता रामायण आदि ग्रंथों में भूत प्रेत के बारे में क्या कहा गया है?

भूत प्रेत , चुड़ैल ,पिचास ,ब्रह्मा जिन्न ,शैतान आदि क्या होते हैं? यह सब होते भी है कि नहीं होते जैसे विषयों को बहुत ही सरलता के साथ समझने का प्रयास किया गया है?

साथ ही समाज में व्याप्त ऐसे अन्ध परंपराओं के निवारण के लिए क्या किया जा सकता है ? इन चमत्कारों के क्या रहस्य होते हैं ? जिस पर से भी पर्दा उठाया गया है।

एक प्रकार से बहुत ही संग्रहित पुस्तक है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ना चाहिए । मैं स्वयं इस पुस्तक को कई बार पढ़ा और आज पुनः पढ़ा।

सफाई

यह पुस्तक आध्यात्मिक सफाई के बारे में लिखित है। जिस प्रकार से गंदी नाली में कितना भी गंगाजल डाला जाए तो वह गंदा का गंदा ही रहता है।

इसी प्रकार से अध्यात्म मार्ग में साधकों की यदि सफाई सद्गुरु न करें तो वह कितनी भी साधना किया करता रहे उन्नति को प्राप्त नहीं होता है।

अक्सर बहुत से लोगों की ऐसी शिकायत होते हैं कि मैं इतना पूजा पाठ करता हूं फिर भी कोई लाभ नहीं होता है। इसका मुख्य कारण यही है कि व्यक्ति की आत्मा में जब तक काम , क्रोध , लोभ ,मोह, मद बैठी रहेगी वह उससे जलता रहेगा ऐसे में की गई सारी पूजा पाठ व्यर्थ हो जाती है।

जब तक सद्गुरु आत्मा में बैठे विकारों को साफ नहीं कर देता साधना में उन्नति नहीं हो पाती। सफाई की प्रक्रिया श्री रामचंद्र मिशन की एक अद्भुत खोज है।

अधिकांश बहुत सी संस्थाएं ध्यान का अभ्यास तो कराते हैं लेकिन आत्मा में बैठे मल को, विकारों को साफ करने का उनके पास कोई माध्यम नहीं होता है जिसके कारण उनकी प्रगति अवरुद्ध रहती है।

कभी-कभी सफाई की प्रक्रिया के द्वारा पूर्व जन्मों के रोग आदि भी मिटते देखा गया है। अध्यात्म मार्ग में प्रवेश के लिए यह बहुत ही सुंदर पुस्तक है।

विष्णु के सात रहस्य

यह पुस्तक देवदत्त पटनायक द्वारा लिखित है जो कि पौराणिक विषयों के अच्छे जानकार हैं। हिंदू धर्म में त्रिमूर्ति के तीन देवताओं में से एक विष्णु है।

जिन्हें जग का पालनकर्ता भी कहा जाता है । पौराणिक ग्रंथों में विष्णु को 10 अवतारों वाला दशावतार माना गया है और श्री राम और श्री कृष्णा उनके सबसे प्रमुख अवतार हैं।

विष्णु का निवास दो अलग-अलग जगह पर है । दुनिया से दूर बैकुंठ में और दूसरा क्षीरसागर में जहां पर वह अनंत शेष पर विराजमान है। भगवत गीता में विष्णु को विश्व रुप या विराट पुरुष भी माना गया है।

इस जग पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किये विष्णु की सदा प्रसन्न देखने वाले चार बाहें हैं। जिनमें उन्होंने कमल का फूल गदा , संख और सुदर्शन चक्र पकड़ रखा है ।

चार हाथों में पकड़ी अलग-अलग वस्तुओं का क्या रहस्य है? उनके पास अस्त्र भी है जिनका क्या महत्व है ? विश्व को मोक्ष या मुक्ति दिलाने वाला मुकुंद क्यों कहा जाता है? इत्यादि रहस्याओं को इस पुस्तक में रहस्योद्घाटन किया गया है।

इस पुस्तक के मुख्य खासियत यह है कि इसमें लगभग 150 चित्र हैं। लेखक पौराणिक कथाओं का रहस्योद्घाटन करता है उसको चित्रों के माध्यम से भी समझाने का प्रयास करता है। जिससे पौराणिक विषयों को पाठक बड़ी सरलता के साथ समझ सकता है।

इस पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि हिंदू धर्म की आध्यात्मिक धारणाओं को स्त्री पुरुष के भेद से कैसे समझाया जाए? साथ ही मनुष्य तथा पशु का अंतर स्पष्ट किया गया है।

इसमें विष्णु के सात रहस्यो में मोहनी का रहस्य , मत्स्य का रहस्य, कूर्म का रहस्य , त्रीविक्रम का रहस्य, राम का रहस्य, कृष्ण का रहस्य एवं कल्कि के रहस्य का स्पष्टीकरण किया गया है।

पौराणिक विषयों को समझने के लिए यह एक सुंदर पुस्तक है।

मौन मुस्कान की मार

यह पुस्तक आशुतोष राणा द्वारा लिखित है। इसमें कुल 27 आलेख हैं जो कि अधिकांशतः उनके बचपन के दोस्तों के जीवन पर आधारित है। इसके मुख्य खासियत यह है कि आशुतोष राणा ने अधिकांश कथानक को उन्हीं रूपों में व्यक्त किया है जिस रूप में उनके बचपन के दोस्त साथी आदि बोला करते थे। इसमें मनुष्य के विभिन्न रूपों का वर्णन बहुत सुंदरता पूर्वक किया गया है।

सच है मनुष्य ही संत है, सन्यासी है , भला है , बुरा है , वही ठग ,डाकू, चोर और लुटेरा भी है, वही हत्यारा है और वही रक्षा करने वाला है , वही धनी है, गरीब है , महात्मा भी है और नीच भी है।‌

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी।
जिसको भी देखना हो कई बार देखना।

इस पुस्तक को पढ़ने से ऐसा लगता है कि आशुतोष राणा एक अच्छे पाठक भी है, मन लगाकर पढ़ते हैं, ध्यान से सुनते हैं और तब लिखते हैं।

इस समय लोगों की सारी देशभक्ति सोशल मीडिया पर उल्टी की तरह कर दी जा रही हैं। देश भक्ति क्या है ? में वह कहते हैं-” अरे भैया! जरा सोशल मीडिया पर आए , लाइक डिसलाइक ठोंके , समर्थन विरोध करें , थोड़ा गाली गुप्तार करें , आंदोलन का हिस्सा बने, अपने राष्ट्र प्रेम का सबूत दे तब देश भक्त कहलाएंगे ।

बदलाव कोई ठेले पर बिकने वाली मूंगफली नहीं है कि अठन्नी दी और उठा लिया , बदलाव के लिए ऐसी तैसी करनी पड़ती है और करवानी पड़ती है वरना कोई मतलब नहीं है आपके स्मार्टफोन का। हम आपको बाहर निकल कर मोर्चा निकालने के लिए नहीं कह रहे हैं। वहां खतरा है।

आप पिट भी सकते हैं। यह काम आप घर बैठे ही कर सकते हैं। अभी हम लोगों ने इतनी बड़ी रैली निकाली की तंत्र की नींव हिल गयी। लाखों लाख लोग थे। हाई कमान को बयान देना पड़ा । मैंने कहा कि यह सब कहां हुआ तो बोले सोशल मीडिया पर। इतनी बड़ी थू थू रैली थीं कि उनको बदलना पड़ा।

अच्छा शिक्षक होने के लिए अच्छा विद्यार्थी होना आवश्यक है। इसी प्रकार अच्छा लेखक होने के लिए अच्छा पाठक होना भी आवश्यक है।

इस पुस्तक में जो हमें सबसे अच्छी बात लगी बात है उनकी ठेठ गवई भाषा शैली। जिसमें कोई बनावटीपन नहीं है। सुंदर पुस्तक है।

दरकती पहाड़ी सिसकते आदिवासी

यह पुस्तक राम सुख यादव जी द्वारा रचित शिक्षा जगत में विसंगतियों पर आधारित है। लेखक आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षक रहे इस प्रकार से वहां पर व्याप्त अंधविश्वास आदि के बारे में भी उन्होंने इस पर प्रकाश डाला है।

वह लिखते हैं -” समाज में लोग अंधविश्वास में पड़कर धर्म परिवर्तन कर रहे हैं । गरीब गरीबी से ज्यादा झूठ पाखंड से परेशान है । गांव में लोग तंत्र मंत्र ऊपरी बाधा से परेशान है ।

क्या सही है और क्या गलत इसका आकलन करना जरूरी है । यह गांव की सबसे बड़ी समस्या बन गई है । यह एक गंभीर सोचने का विषय है । इसे अंधविश्वास कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। संभवत इसी कारण गांव की मिठास कम हो रही है और खटास बढ़ रही है।

इस पुस्तक में मुख्य रूप से आदिवासी ग्रामीण जीवन के दुख और परेशानियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
एक जगह एक बच्चा जो मटर गस्ती करता था उसको समझते हुए वह कहते हैं-” तुम्हारे पिता तुम्हें पढ़ने के लिए भेजते हैं क्यों? क्योंकि वह जानते हैं किस तरह वह रो धोकर वह जीवन काट रहें हैं।

वे सोचते हैं कि बेटा पढ़ लिख जाएगा तो हमारी जैसी उसकी दुर्गत नहीं होगी। वह सोनभद्र की पहाड़ियों में भटकेगा नहीं। लेकिन बेटा तुमने उनकी सोच उनकी मेहनत को पानी में बहा रहे हो ।

मेरा क्या मैं अध्यापक हूं पढ़ो चाहे ना पढ़ो, तंबाकू खाओ या सिगरेट पियो, सपना तुम्हारे पिता का है तोड़ो या जोड़ो मैं तुम्हें समझा इसलिए रहा हूं कि शायद मेरी बात समझ में आ जाए और अध्यापकों के साथ अच्छा व्यवहार करो।
इससे वे बच्चे आत्मग्लानि से भर गए और कहने लगे -“सर जी इतनी गहराई से हम नहीं समझ पाए कि हमारे माता-पिता किस तरह हमें पढ़ाते हैं।”

इस पुस्तक में पहाड़ी क्षेत्रों में किस प्रकार से अध्यापकों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे विषयों को भी बहुत प्रमुखता के साथ उभारा गया है।

यादें

अजीब है मनुष्य की प्रकृति ।जो हमारे पास है उसका हमें आभास तक नहीं होता और वही चीज कुछ दिनों के लिए हमसे दूर हो जाए तो उसकी याद सताती हैं ।हम उसके लिए व्याकुल हो जाते हैं।

यह पुस्तक मुरारी लाल शर्मा जी ने अपनी धर्मपत्नी की याद में लिखा है। इसमें उन्होंने पूरी ईमानदारी बरती है। वह लिखते हैं-” जब मुझे उसकी याद आती है तो उस समय मेरी स्थिति मेले में खोए उस छोटे बच्चों जैसी होती है जिसका रो-रो कर बुरा हाल है।

उसे अपने चारों ओर सब दिखते हैं बस वह नहीं दिखता जिसकी तलाश में वह व्याकुल हुआ फिर रहा है।”
एक अन्य जगह वह लिखते हैं-” वह मेरे लिए एक ऐसी शून्य थी जो मेरे पीछे लगते ही मेरी ताकत को कई गुना बढ़ा देती थी। मेरे अलावा इस शून्य की कीमत को कोई और नहीं समझ सकता।”

सच में जब तक हम जीवनसाथी के साथ होते हैं तो उसकी कीमत का कभी आभास नहीं होता। आज मोबाइल के जमाने में एक दूसरे की भावनाओं को हम उतना नहीं समझ पाते हैं जितना पत्र में लिखे शब्दों से समझा जाता रहा है। जिन बच्चों ने कभी पत्र ना लिखा हो उन्हें पत्रों की कीमत क्या होती है नहीं समझ सकते हैं।

उनकी पत्नी एक पत्र में उनके लिए लिखती हैं -“किसी बात पर भी आप बहुत जल्दी नाराज हो जाते हैं ऐसा मत किया करो। हो सकता है दूसरे की भी कोई मजबूरी हो । आप हमेशा प्रसन्न रहकर मेरे ऊपर मेंहरबानी किया करो ।आप बहुत अच्छे हो बस गुस्सा मत किया करो।”
यह पत्र एक प्रकार से दो पवित्र आत्माओं का मिलन है।

मुरारी लाल जी अपनी पत्नी मालती जी के लिए लिखते हैं-
कल हमारे पास थे तुम , आज हमसे दूर हो ,
सच बताओ , ऐ सनम ! कब तक रहोगी दूर हमसे ।
मन तुम्हारी याद में, अब मन लगाकर जल रहा है ,
सेज कांटे बन गई है, कब झड़ेंगे पुष्प इससे।

एक जगह पत्र में वह लिखते हैं –
खैर माला मरने तो दुनिया को.. तुम जरा एक बार मुस्कुरा दो..

कभी-कभी लगता है उनकी पत्नी जी वाक्य में अशुद्धि कर दिया करती थी। जिसको शुद्ध करने के लिए वे लिखते हैं —
तुमने एक वाक्य लिखा है “पत्र आवश्यक डालना” जबकि तुमको लिखना चाहिए था “पत्र अवश्य डालना” आवश्यक की जगह अवश्य लिखना चाहिए।
२- नही – नहीं। ३- पहुचाने – पहुंचाने।४- करे – करें। ५- एकेले- अकेले। ६- पसन्न – पसन्द। खैर बहुत गलती करती हो जरा आराम से लिखा करो।
इन पत्रों में ऐसा लगता है जैसे संपूर्ण प्रेम उमड़ पड़ा हो।
वे लिखते हैं-
जिसके पत्रों से प्रेरित होकर ‘यादें’ लिखी
आज जो स्वयं एक याद बनकर रह गई।
पिएं आंख के अश्रु तुम्हारे जाने पर ,
हुई हृदय की हार तुम्हारे जाने पर।
चुभते तो शायद सह जाता मैं ,
गढ़े हृदय में फूल तुम्हारे जाने पर।
जीवन की उलझी राहों में मीत मेरे ,
व्यर्थ लगा संसार तुम्हारे जाने पर।

इस संसार से एक न एक दिन प्रत्येक व्यक्ति को जाना पड़ता है। मृत्यु एक अटल सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। व्यक्ति के जाने के बाद बस यादें ही उसकी रह जाती हैं। मुरारी लाल जी द्वारा रचित अपनी पत्नी मालती जी के यादों को संजोए हुए यह अद्भुत ग्रंथ साहित्य जगत के लिए एक अनमोल रतन के समान है । इसको रच कर उन्होंने अपनी पत्नी को अमर कर दिया।

स्पिरिचुअल एनाटॉमी

यह पुस्तक मुख्य रूप से हमारी आध्यात्मिक यात्रा में चक्र को सक्रिय रूप से व्यस्त रखने का एक अवसर प्रदान करती है।

अधिकांश व्यक्तियों कि यह जिज्ञासा होती है कि इस आधुनिक जीवन में रहकर हम अपने उद्देश्य को कैसे प्राप्त करें?

ऐसे स्पिरिचुअल एनाटॉमी नामक पुस्तक के माध्यम से दाजी जो इसके लेखक हैं मानव के खंडित जीवन को जोड़कर हमारे लिए उच्चतम सामर्थ्य को प्राप्त करने का एक मार्ग प्रस्तुत करते हैं ।

वह हमें यह भी याद दिलाते हैं कि उन्नत चेतना का मार्ग हमेशा हृदय से आरंभ होता है। दीपक चोपड़ा नामक लेखक कहते हैं-” असाधारण… स्पिरिचुअल एनाटॉमी योग दर्शन के ज्ञान और आपकी अनन्त सामर्थ्य को प्रकट करने वाली व्यावहारिक विधियों का मिश्रण है।”

मुख्य रूप से यह पुस्तक आध्यात्मिक रूपांतरण के लिए एक मार्गदर्शक की भांति है।

अनसुनी कहानियां

यह कहानी संग्रह प्रोफेसर सुशील राकेश द्वारा संपादित हैं। इस संग्रह के अधिकांश कहानी कोरोना काल में बेघर हुए लोगों के दर्द पर आधारित है।

किस प्रकार से कोरोना ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया ऐसे विषयों को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्त किया है। इस संग्रह में हमारी तीन कहानियां अंधश्रद्धा, शुभ अशुभ और मुहूर्तवाद है।

यह सभी कहानियां समाज में व्याप्त अंधविश्वासों पर आधारित है। कहानी ही वह विधा है जिसके माध्यम से हम समाज के विदुप्रताओं को सहजता से अभिव्यक्त कर सकते हैं। कहानी पढ़ने वालों के लिए एवं बच्चों के लिए भी यह एक सुंदर कहानी संकलन है।

सबसे प्यारी मेरी मां

यह संकलन मां के जीवन पर आधारित संपादक सौरभ पांडे द्वारा संपादित है। इसमें लगभग सैकड़ो लोगों ने मां के जीवन के प्रति अपने भावों को अभिव्यक्त किया है।

मां दुनिया का सबसे पावन शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड स्पंदित हो उठता है। इसकी दिव्यता में प्रेम, त्याग ,ममता और समर्पण का अद्भुत समावेश होता है जो मां को सागर से गहरा और आकाश से भी ऊंचा बना देता है।

अक्सर जीवन में जब तक हमारे मां-बाप होते हैं तब तक हम उनकी इज्जत करना नहीं समझते। उनके ना रहने पर ही उनका अभाव हमारे जीवन को अंदर से उद्वेलित करता है।

तब तक बहुत देर हो चुकी होती है इसलिए लोगों को चाहिए कि अपने माता-पिता के जीवित रहते उनकी सेवा सत्कार में कोई कमी ना रखें। जीवित माता-पिता की सेवा करना ही सच्ची श्राद्ध है। यह एक बहुत सुंदर संकलन।

वह अद्भुत हैं

यह पुस्तक वी के सोमकुमार द्वारा रचित पी राजगोपालाचारी के यात्रा वृत्तांत पर आधारित है। इस पुस्तक में कोई सद्गुरु कैसे अपने सामान्य जीवन के माध्यम से अपने शिष्यों के प्रति संवेदनशील होता है जैसे विषयों को बहुत ही सहजता के साथ अभिव्यक्त किया गया है।

पुस्तक में अपने सद्गुरु के साथ दुनिया भर की यात्राओं में जिन-जिन आध्यात्मिक मोतियों को बटोरा उन्हें पिरोकर प्रस्तुत किया है। इसे पढ़कर यह अंतर कर पाना कठिन है कि वह आध्यात्मिक जीवन की चर्चा कर रहे हैं कि भौतिक जीवन की। असल में भौतिकता एवं आध्यात्मिकता दोनों अस्तित्व एक हो जाते हैं।

यह व्यवहारिक जीवन में उपयोगी होने के साथ-साथ दिव्यता की ओर कदम बढ़ाकर अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इसका सरल विवेचन लेखक ने पुस्तक में किया है।

हम महान पुरुषों के बारे में बहुत से पढ़ते एवं जानते हैं लेकिन सामान्य जीवन में वे किस प्रकार से संवेदनशील होते हैं इसे हमें बहुत कम जानकारी होती है उसकी पूर्ति यह पुस्तक करती है।

द हार्टफुलनेस वे

( The Heartfulness Way )

यह पुस्तक आध्यात्मिक रूपांतरण के लिए हृदय आधारित ध्यान के जिज्ञासुओं के लिए एक उत्तम पुस्तक है। यह पुस्तक कमलेश डी पटेल (दाजी) एवं जोशुआ पोलाक के आध्यात्मिक वार्ता पर आधारित है।

यह ध्यान को समझने की सबसे सरल पुस्तक है। इसमें ध्यान के रहस्याओं का बहुत ही सरलता के साथ प्रकटन किया गया है। ध्यान कब और कहां करें? ध्यान के आसन ? रिलैक्सेशन ?ध्यान कैसे करें?

ध्यान कितनी देर करें? जैसे विषयों को बहुत सरलता से समझाया गया है? इसके अलावा हमारे आत्मा में पड़े कुसंस्कारों की सफाई किस प्रकार से करें तथा जीवन में गुरु की क्या भूमिका होती है इत्यादि विषयों को शामिल किया गया है।

मैंने बहुत सी ध्यान की पुस्तकें पढ़ी लेकिन ध्यान को समझने के लिए इससे अच्छी पुस्तक दूसरी कोई नहीं मिली। साथ ही यह पुस्तक सहज मार्ग के सिद्धांतों को बहुत सरलता के साथ अभिव्यक्त करती है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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