पुस्तक समीक्षा: एक हज़ार साल आगे की सोच, उपन्यास 3020 ई. से

Book Review | एक हज़ार साल आगे की सोच, उपन्यास 3020 ई. से

पुस्तक समीक्षा: एक हज़ार साल आगे की सोच, उपन्यास 3020 ई. से

( Book Review: Ek Hajar Saal Aage Ki Soach , Upanyas 3020 AD )

 

किताब- 3020 ई.

विधा- उपन्यास (साइंस फिक्शन)

लेखक- राकेश शंकर भारती

समीक्षक- डॉ. सत्यनारायण चौधरी, सहायक प्राध्यापक (हिंदी साहित्य), जयपुर, राजस्थान

प्रकाशक- अमन प्रकाशन, कानपुर

उपन्यास के कुल पृष्ठ- 200

मूल्य- 200 रूपये

प्रवासी साहित्यकार राकेश शंकर भारती जी की संघर्षयात्रा भारतभूमि के सहरसा जिले के एक छोटे-से  गाँव से जेएनयू एवं वहाँ से यूक्रेन तक का सफर भी किसी उपन्यास से कम रोचक नहीं है।

ऐसे प्रवासी साहित्यकार ने भारतीय परिप्रेक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए यहाँ की गौरवशाली संस्कृति व सभ्यता की अपने उपन्यासों के माध्यम से विदेश में भी अमिट छाप छोड़ी है।

यह उनका दूसरा प्रकाशित उपन्यास है लेकिन उनकी स्वाभाविक एवं परिस्थिति अनुकूल शैली पाठक को आकर्षित करती है। उनके उपन्यासों और कहानी-संग्रहों के विषय सदैव नये होते हैं। 3020 ई. उपन्यास में भी तत्कालीन समस्या कोरोना और खगोल विज्ञान को ध्यान में रखकर उपन्यास का कथानक गढ़ा गया है।

एक उपन्यास की जो विशेषताएँ होती हैं उन सभी का समावेश इस उपन्यास में है। जैसे- कथानक या विषयवस्तु, पात्र या चरित्र चित्रण, संवाद, देशकाल, उद्देश्य आदि।

इस उपन्यास में कोरोना से संबंधित संपूर्ण जानकारी, लॉकडाउन के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रभावों का विस्तृत वर्णन, पात्रों (धर्मपाल-दादाजी, द्वारपाल-पिता व रामपाल-पोता) की आपसी चर्चा के माध्यम से किया गया है।

उपन्यास में तीन समानाँतर कहानियाँ चलती हैं। जिसमें एक कहानी में हरियाणा का एक जाट परिवार है जो अब दिल्ली में रहता है।

परिवार में तीन पीढ़ियों के विचार, उनका आपसी वैचारिक मतभेद लेकिन घर के बुज़ुर्ग व्यक्ति का ही मुखिया होना भारतीय ग्रामीण परिवेश की संस्कृति को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

दादा धर्मपाल चौधरी आर्मी से रिटायर्ड हैं, बेटा द्वारपाल आर्मी छोड़कर ट्रेवल्स का कार्य करता है एवं पोता रामपाल प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर है।

भारतीय संस्कृति का विष जातिवाद व उससे निर्गत छुआछूत का यथार्थपरक चित्रण और नयी पीढ़ी द्वारा उसका पुरज़ोर विरोध यहाँ दिखायी देता है। तीनों की अलग-अलग प्रेमकथा है।

पत्नी के होते हुए भी प्रेमिका से संबंध बनाये रखकर उसे छुपाने का प्रयास किया गया है। नीच समझी जाने वाली जाति की लड़की से भला उनकी शादी कैसे करा दी जाये।

लेकिन परिस्थितियों के कारण दादा धर्मपाल एवं पिता द्वारपाल का हृदय परिवर्तन होता है और समाज की परवाह न कर अपने पोते व पुत्र रामपाल की शादी करा देते हैं।

यहाँ समाज को एक नयी राह दिखाने का मार्ग प्रशस्त किया गया है। इसी में कोरोना एवं लॉकडाउन की चर्चा की गयी है। कहानी अलग-अलग भागों में चलती है।

जो तारतम्य में अवरोध तो महसूस कराती है लेकिन घटनाएँ कहीं-न-कहीं आपस में परिस्थितियों से सामंजस्य रखती हैं इस कारण यह क्रमबद्धता टूटती नहीं है।

3020 ईस्वी में पृथ्वी पर प्रलय और मानव जाति के अस्तित्व को बनाये रखने हेतु मंगलयान द्वारा साधन संपन्न देशों द्वारा अपने कुछ नागरिकों को वहाँ बस्ती बसाकर रहने का प्रबंध किया गया है।

दूसरी कहानी में लेखक स्वयं परिवार सहित उपस्थित है जिसमें पत्नी ओक्साना, बेटा दवित, बेटी देविका एवं स्वयं राकेश जी हैं।

लेखक एक तरह से सपना देखते हुए पृथ्वी पर प्रलय आने, पृथ्वी के समाप्त होने की कगार पर पहुँचने पर एक जुट होकर मंगल पर जीवन की कल्पना कर वहाँ मानव बस्ती बसाना, मंगल पर बेटे दवित के द्वारा परिवार की याद एवं अपनी पृथ्वी पर वापस पहुँचने की अकुलाहट का भावनात्मक चित्रण मर्मस्पर्शी है।

पुंज के तेजेंदर सर, भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी आदि के साथ वार्तालाप, अपने देश के प्रति इन सभी के प्यार को अपनी लेखनी से भारती जी द्वारा इसको प्रभावी व रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।

खगोल विज्ञान पर उपन्यासकार की जानकारी पाठक को प्रभावित करने में सफल रही है। मंगल ग्रह पर किस तरह जल की समस्या है, उसका क्या समाधान हो सकता है।

खाने के लिए ग्रीन हाउस तैयार कर सब्जी व फल इत्यादि के उत्पादन में अपनी वैज्ञानिकता का बुद्धिमतापूर्ण परिचय भारती जी द्वारा बख़ूबी दिया गया है।

विश्व के पथप्रदर्शनकर्ता के रूप में भारत को दिखाया गया है जो मोदी जी के नेतृत्व में यह कार्य कर रहा है। हो सकता है राजनीतिक विरोधियों को यह नागवार गुज़रे, परंतु कल्पना के स्थान पर यह यथार्थपरक है।

अगर हम राजनीतिक विश्लेषण न कर उसे बुद्धि के तराजू पर तोले तो यह हमें रुचिकर लगने के साथ हमारे अंदर गौरवपूर्ण रोमाँच पैदा करता है। तीसरी कहानी में एक महिला उल्याना के जीवन की कहानी है जो उसके जीवन में प्रेम एवं उसमें असफलता को समेटे हुए है।

हालाँकि कई पुरुष उसके जीवन में आते हैं और चले जाते हैं, परंतु वह हमेशा अपना शत प्रतिशत प्रेम उन्हें देती है लेकिन हर बार कहानी का अंत दुखाँत होता है। उल्याना की कहानी बड़ी ही मार्मिक है वह नीरस हृदय में भी करुणा का संचार कर देती है।

भाषा शैली देश काल के आधार पर है जो पाठक को यथार्थता का अहसास दिलाती है। उपन्यास का सर्वाधिक सुखद पहलू भारती जी द्वारा मंगल पर जीवन की कल्पना कर उसे साकार रूप देना है जो कि 3020 में आयी महामारी से मानव अस्तित्व को बचाने के लिए किया गया है।

भविष्य की ऐसी कल्पना भारती जी ही कर सकते है। पाठक को यदि कुछ नया पढ़ना है और सधी हुई भाषा में तो यह उनके लिए बेहतरीन उपन्यास है। भारती जी को हिंदी पाठकों की तरफ़ से ऐसे उपन्यास के लिए साधुवाद।

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समीक्षक- डॉ. सत्यनारायण चौधरी

सहायक प्राध्यापक (हिंदी साहित्य)

जयपुर, राजस्थान

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