Tribute paid to Munawwar Rana

आज दिनांक 16-1-24 को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में भाषा एवं कला संकाय विभाग के अन्तर्गत चल रहे उर्दू विभाग ने मुनव्वर राना के निधन पर शेष स्मृति का आयोजन किया गया।

भाषा एवं कला संकाय विभाग की अधिष्ठात्री डा पुष्पा रानी ने कहा कि अदब के विख्यात शायर ‘मुनव्वर राणा’ का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था। क्या आप जानते हैं कि उनका मूल नाम ‘सय्यद मुनव्वर अली’ था लेकिन साहित्य जगत में वह मुनव्वर राणा के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बता दें कि देश के विभाजन का असर उनके परिवार पर भी पड़ा था।राणा की 14 जनवरी 2024 को 71 वर्ष की आयु में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में गले के कैंसर से मृत्यु हो गई ।

उन्हें ऐशबाग क़ब्रिस्तान में दफनाया गया, नमाज़-ए-जनाज़ा नदवतुल उलमा लखनऊ में हुई।अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि मुनव्वर साहब के होने के क्या मायने थे. उनके होने से शायरी की दुनिया क्यों मुनव्वर थी. शायरी पढ़ते हुए रो देना, सीना पीट कर शेर कहना, उनकी शायरी की तासीर को दिखाता है.

उर्दू भाषा के सहायक प्राध्यापक मनजीत सिंह ने कहा कि किसी ने सही कहा कि ‘एक शायर का रोना, इक ज़माने के रोने जैसा है…’ ये बात मुनव्वर राना को देखने से ज़ाहिर होती है. न जाने कितने ही बार उन्हें सुनकर लोगों ने अपने आसूं बहाए और अपने उठते हुए रोंगटे को हाथों से रगड़ कर बैठा दिया.

उनकी मां पर लिखी गई शायरी पर जान छिड़कता है. ‘उदास रहने को अच्छा नहीं बताता है, कोई भी जहर को मीठा नहीं बताता है. कल अपने आपको देखा था मां की आंखों में, ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है…’ मां और मां के प्रेम के लिए ऐसे अनगिनत शेर लिखकर उर्दू शायरी का रूख बदल देने वाले अजीम अजीम शायर मुनव्वर राना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ।

सामान्य तौर पर उर्दू गजल इश्किया इजहार के लिए जानी जाती है, लेकिन मुनव्वर ने ‘मां’ और अन्य रिश्तों पर बेहतरीन ग़ज़ल लिखी और उसे आम लोगों के बीच मशहूर कर दिया. उर्दू शायरी में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

इस मौके पर उर्दू भाषा के आयुष, कुलदीप, जितेन्द्र कौर,अली खान आदि मौजूद थे।

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