गीत लिखे हैं मैंने मन के

( Geet likha hai maine man ke )

 

गीत लिखे हैं मैंने मन के, भावों के सुंदर उपवन के।
जहां खिले हैं पुष्प हजारों, महकते हैं वन चंदन के।
गीत लिखे हैं मैंने मन के

कलमकार वाणी साधक, शब्द सुरीले मोती चुनता।
ओज बने हुंकार लेखनी, देशभक्ति के स्वर बुनता।
शब्द शिल्प सृजन सारथी, दीप जलाता जन मन में।
उजियारा आलोक भरें, घट-घट चंचल चितवन में।
गीत लिखे हैं मैंने मन के

स्नेह सुधा रस बहती धारा, मोती बरसते प्यार के।
अधरों पर मुस्कान मधुर सी, वीणा की झंकार से।
गीत गजल दोहा चौपाई, पावन छंदों की फुहार से।
मुक्तक मंद मंद मुस्कुराया, लेखनी की धुंआधार से।
गीत लिखे हैं मैंने मन के

आडंबर से दूर रहा नित ,सत्य का मार्ग अपनाया।
शील सादगी समर्पण, किर्तिमान परवान चढ़ाया।
राष्ट्रप्रेम में डूबा मनमौजी, गीत रचता मैं वतन के।
गाओ मेरे देश प्रेमियों, बोल सुरीले अपने मन के।
गीत लिखे हैं मैंने मन के

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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