तुम्हारी खुशी की खातिर

तुम्हारी खुशी की खातिर | (अंतिम भाग ) | Hindi Story

तुम्हारी खुशी की खातिर

( Tumhari khushi ke khatir )

अदनान जल्दी से शरणार्थी कैम्प में पहुंचा लेकिन रुकय्या का कही। अता-पता नहीं था, उसकी निगाहें चारों तरफ रुकय्या को ढूढ़ती रही। वह हर रोज समुद्र के किनारे पर जाकर बैठता, उसका इन्तजार करता कि शायद कभी न कभी तो वह उसे नज़र आयेगी लेकिन वह उसे कहीं नजर न आती।

अब उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। वह हर वक्त खोया खोया, खामोश सा रहने लगा। घरवाले भी उसकी ये हालत देखकर परेशान हो गये। उनकी समझ मे नहीं आ रहा था कि अदनान को ये क्या हुआ, पहले तो ये ऐसा नहीं था हंसता मुस्कुराता था, सभी के साथ हंसी मजाक करता था।

अब एक दम से कैसे खामोश हो गया, सभी ने इसके बारे मे काफी उससे पूछा, मगर वह टाल गया। आखिर घरवालों को अदनान की खामोशी दूर करने का एक ही रास्ता नजर आया कि उसकी शादी कर दी जाये शायद बीवी को पाकर वह अपना गम भूल जाये।

उन्होंने एक प्यारी सी लड़की को देखकर अदनान की शादी उससे कर दी। अफशां एक अच्छी बीवी साबित हुई। अदनान भी उसे पाकर कुछ हद तक अपना गम भूल गया लेकिन, रुकय्या की यादों को दिल से न मिटा सका।

वह उसकी पहली मुहब्बत थी और पहली मुहब्बत को इतनी आसानी से नहीं मिटाया जा सकता, भले ही वक्त की यादां को धुंधला कर दे, मगर वह मिटती नही। रुकय्या की यादें उसे कभी-कभी बहुत बैचेन कर देती। इन यादों से बचने के लिये उसने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर मे करवा लिया और अब वह कुछ हद तक सभ्ांल भी गया।

उनकी जिंदगी आराम व सुकून से कटने लगी। खुदा ने उनके दामन में फूल जैसे दो बच्चे भी डाल दिये। मगर दूसरे बच्चे की पैदाइश के बाद अफशां को घर के कामों में दिक्कत होने लगी तो अदनान ने घर के कामों के लिये एक नौकरानी रखने का फैसला कर लिया इसके लिये उन्होंने अखबार में इश्तहार भी दे दिया।

इसी बीच अदनान को दो हफ्तों के लिए बिजनेस टूर के लिए शहर के बाहर जाना पड़ा। जब वह टूर से वापस आया तो उसने देखा अफशां बहुत खुश थी। उसे एक अच्छी नौकरानी मिल गयी थी। अफशां ने बताया कि वह घर का सारा काम बेहद सलीके से करती है। साथ ही, बच्चों की देखभाल करती है व उन्हें सभांलती है।

उसकी आमद से अफशां को बहुत आराम मिला। यह सुनकर अदनान की सुकून हुआ कि चलो नौकरानी का इन्तजाम तो हुआ। अगले रोज अदनान टी0वी0 लाउन्ज में बैठा सुबह का अखबार पढ़ रहा था। तभी उसके कानों में आवाज आयी, सर चाय। उसे ये आवाज कुछ जानी पहचानी सी लगी, उसने सर उठाकर देखा तो वह अपनी पलकें झपकना भूल गया। उसके सामने वही मछली वाली लड़की खड़ी थी।

रुकय्या? रुकय्या तुम यहाँ कैसे? वह उससे सख्त हैरानी के आलम में पूछ रहा था। रुकय्या भी हैरतज़दा नजरों से उसे देखने लगी उसे गुमान न था कि आज अदनान उसे ये इस हालत में मिल जायेगा।

रुकय्या को सामने देखकर अदनान जी सभी यादें ताजा हो गयी उसे अपने ऊपर जब्त रखना मुश्किल हो गया फिर भी उसने बमुश्किल अपने ऊपर जब्त रखते हुए रुकय्या से सभी हालात मालूम किये।

रुकय्या ने बताया कि उसके जाने के दो रोज़ बाद अचानक समुद्र में तूफान आया और धीरे धीरे उस तूफान का रुख उनकी बस्ती की ओर बढ़ता गया, बढ़ते बढ़ते पानी का एक तेज रेला उसे भी अपने साथ वहां ले गया। उसके मां-बाप, बहन-भाई कब उससे बिछुड़ गये, उसे कुछ होश न था।

जब उसे होश आया तो उसने अपने आप को अस्पताल मे मौजूद पाया। धीरे-धीरे तबियत ठीक होने लगी लेकिन मेरा परिवार खत्म हो चुका था। किस्मत से मैं ही बच पायी थी। अस्पताल वालों ने मुझे महिला आश्रम के सुपुर्द कर दिया। अब यहाँ अफशां मुझे ले आयी।

उसकी ये कहानी सुनकर अदनान को बहुत दुःख हुआ। आज हालात ने उन्हें मिला भी तो किस मोड़ पर। जहां एक तरफ उसकी मुहब्बत थी तो दूसरी तरफ उसके बीवी बच्चे। न वह अपनी मुहब्बत को जुदा करना चाहता था न अपना परिवार ही।

वह अजीब कशमकश में मुब्तिला था। उसे डर था अगर रुकय्या यहाँ रही और अफशां को उनके बारे में कुछ मालूम हो गया तो उसका घर बर्बाद हो जायेगा।

वह अपने दिल पर पत्थर रखकर रुकय्या को अपनी नजरों से दूर भी कर दे तो किस वजह से, उसे तो कोई वज़ह भी नजर नहीं आ रही थी। रुकय्या ने तो पूरे घर की जिम्मेदारी अपने सर ले ली थी।

घर का काम हो या बाहर का या फिर बच्चों की देखभाल वह हर काम बखूबी निभती। अफशां तो उसकी तारीफ करती न थकती थी। एक हफ्ते में ही उसने अफशां को अपना दीवाना बना लिया।

अफशां को तो आराम मिल गया लेकिन, अदनान के दिल का सुकून रात का चौन सब खत्म हो गया। वह कोई भी फैसला यहां कर पा रहा था लेकिन शायद कुदरत ने फैसला कर दिया था। एक रोज अदनान और अफशां शॉपिंग के लिए बाहर जा रहे थे तभी रास्ते मे उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया।

सामने से आते हुए एक ट्रक से उनकी कार टकरा गयी। अदनान का सिर में चोट लगी और अफशां की एक टांग जख्मी हो गयी। दोनो को अस्पताल मे दाखिला कराया गया। इसी दौरान रुकय्या ने उनकी काफी देखभाल की।

अस्पताल में उनकी तिमारदारी करती तो घर पर खाना बनाती, उनके बच्चों की देखभाल करती। उनकी सेवा में उसने अपना चौन भी खत्म कर दिया। रिश्तेदार वगैरह तो चन्द रोज रहकर चले गये, अफशां भी अब घर आ गयी। उसकी एक टांग में काफी चौट।

डॉक्टर ने एक तबील अरसे आराम करने को कहा। रुकय्या उसकी देखभाल वगैर गिले शिकवे के अपना फर्ज समझकर कर रही थी। उस पर पूरी तवज्जोह दे रहीं थीं। वक्त पर अफशां को दवाई देना, सुप व धूप देना, बच्चों की देखभाल करना।

ये सब काम, उसने अपने जिम्मे ले लिये। अफशां उसकी इस देखभाल से बेहद मुतासिर हुई। हालातों को देखते हुए उसने दिल ही दिल मे एक फैसला किया। अपने इस फैसले को अन्जाम देने के लिए उसने रुकय्या को अपने पास बुलाया और कहा रुकय्या मै चाहती है तुम अदनान के साथ शादी कर लो। ये आप क्या कह रही हो?

रुकय्या ने हैरान होकर पूछा। मैं ठीक कह रही हूँ मुझे तुम्हारी सारी हकीकत मालूम थी, दरअसल जब तुम पहली बार अदनान के लिए चाय लेकर जा रही थी तो मैने कमरे मे आते हुए तुम्हारी सारी बातें सुन ली थी। तुम्हारी बातों से ज़ाहिर था कि तुम और अदनान शादी से पहले एक दूसरे को बहुत चाहते थे।

ये चाहत आज भी तुम्हारे दिल में मौजूद है हालात ने भले ही तुम्हें एक दूसरे से अलग कर दिया हो। मैने अदनान की आँखों मैं तुम्हारे लिए मुहब्बत देखी है, दिल में चाहत के जज्बे देखे हैं। तुम्हें उससे जुदा करना अदनान को दुःख देना है, अदनान को दुःख हो, ऐसा में हरगिज़ नहीं चाहती, फिर मैं तुम्हें हटाना भी चाहती तो किस वजह से हटाती।

मुझे तो तुम्हें हटाने की कोई वजह भी नजर नहीं आयी, उल्टे तुमने तो, मेरी इतनी सेवा की कि कोई अपना सगा भी न कर पाता। हाँ, इतना जरूर था कि मैं एक बडी बहन की हैसियत से तुम्हारी शादी एक अच्छे घर मे करती।

तुम्हारा भी घर बसाती, लेकिन अब हालात ऐसे है कि इस घर को मुझसे ज्यादा तुम्हारी जरूरत है। ये तुम पर जाहिर ही है अगर तुम उस हादसे में हमें ओर हमारे घर को न सँभालती तो जाने क्या हो जाता। दूसरे मुझे अपने शौहर की खुशी जान से ज्यादा अज़ीज़ है फिर चाहे उसका ताल्लुक किसी से भी हो। अफशां आज बेधड़क बोल रही थी।

मानो, आज बोलकर अपने दिल का बोझ हल्का कर रही हो। कुछ देर रुककर अफशां फिर बोली, रुकय्या तुम नौकरानी बनकर तो हमारे घर में सारी उम्र नहीं रह सकती। इसलिये मैं चाहती हूँ, कि तुम अदनान से शादी कर लो।

मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी देखभाल एक बहन की हैसियत से, बच्चों और घर की देखभाल एक माँ और बीवी की हैसियत के करती रहोगी, अफशां ने पूरे उम्मीद की नजरों से रुकय्या की ओर देखते हुए कहा। दरवाजे पर खड़ा अदनान ये सब बातें बड़े गौर से सुन रहा था।

आज उसे अपनी बीवी पर फख्र महसूस हो रहा था। कितनी फख्रदिली से उसने अपनी गृहस्थी की चाबी, अपना एतबार रुकय्या के हाथों सौंप दिया। सिर्फ उसकी ‘‘खुशी की खातिर‘‘

✍️

रुबीना खान

विकास नगर, देहरादून ( उत्तराखंड )

 

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