अनिल जी एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। वे समाज में व्याप्त रूढ़ियों से बच्चों को बचाने के लिए अक्सर वे बच्चों से इस विषय पर चर्चा करते रहते हैं।

एक दिन उन्होंने देखा कि बहुत से बच्चे काली-काली ताबीज गले में बांधे हुए हैं। कुछ हाथ में भी बांधे हैं।
उन्होंने सुमित नाम के लड़के से पूछा तुम ,-“यह क्यों पहने हो”
सुमित ने कहा,-” हमरे बोखार भा रहने , तब अम्मा ने पहना दिया।”

अनिल जी ने कहा,-” बुखार तो अब ठीक हो गया है ना, अब क्यों पहने हो? अच्छा यह बताओ जब बुखार ठीक हो जाता है तो क्या हम उसके बाद भी दवाई खाते हैं नहीं ना, फिर जब बुखार ठीक हो गया तो इसको निकाल कर फेंक दो।”

”नाही ना फेकब नाही तो हमरे फिर बुखार हो जाए” सुमित ने कहा।
ऐसे ही रिंकी भी कुछ ताबीज पहने हुए थी,उन्होंने उससे पूछा,-” तुम यह क्यों पहने हो?”
रिंकी ने कहा,-” हमरे चुरैल पकड़त हां, हम बीमार होइ जाइत है!”

अनिल जी ने कहा कि,-” बच्चों! यह बताओ कि क्या तुमने कभी चुड़ैल देखा है! यह सब मानसिक वहम है जो तुम्हारे मम्मी पापा ने तुम लोगों के मन में डाल देते हैं यही डर भय है तुम कितना भी पढ़ लिख लो कभी निकल नहीं पाता है। बचपन में पड़ा हुआ यह संस्कार हमें जीवन भर परेशान करता है।”

अनिल जी ने बच्चों को समाज में फैले इन टोनों टोटके से बचने के लिए समझाया। ”
उन्होंने आगे कहा,- “चलो मैं तुम्हें एक कहानी बताता हूं भूत पैदा करने की दवाई।”
यह सुन करके सभी बच्चे हंसने लगे। बच्चे जब शांत हुए तो उन्होंने कहा।

ऐसा करो सुबह-सुबह जिस रास्ते से औरतें शौच जाती हैं तुम वहां एक लोटा जल, फूल- माला, बताशा चढ़ा दो और एक नींबू काट दो, देखना सुबह 10:-20 औरते जरूर बीमार मिलेंगी । जिसका भी पैर उस पर पड़ेगा। वह डर भय से बीमार हो जाएगा। हो ना हो कोई निकारी किया है। टोटका किया है और इस डर से उसके हाथ पांव कांपने लगेंगे भयभीत हो जाएगी और वह बीमार हो जाएगा।”

आगे उन्होंने कहा,-” आपने कुछ किया नहीं, बस जो लोगों के मन में डर बैठा है उसके कारण वे सभी बीमार हो जाते हैं।”

ऐसे ही उन्होंने बहुत से व्याख्यानों के द्वारा बच्चों को इस प्रकार के अंधविश्वास से बचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बच्चों से आगे कहा,-” यदि तुम आज इस प्रकार के अंधविश्वासों को अपने मन से निकाल दोगे कि तो तुम जीवन भर सुखी रहोगे।

यह अंधविश्वास मनुष्य को पीढ़ी दर पीढ़ी परेशान करता रहता है। इन अंधविश्वासों में जकड़ने का रास्ता तो है लेकिन निकालने का कोई रास्ता नहीं है। तुम सभी समझदार बच्चे हो अब सोच लो कि तुम्हें अंधविश्वास की बातें अच्छी लगती है की विज्ञान की बातें!”
सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा,-” विज्ञान की बातें ।”

उन्होंने कहा,-“फिर विज्ञान तो इस प्रकार के टोने -टोटके नहीं मानता है ।क्या कोई बच्चा ऐसा है जो अभी इन तावीजों को तोड़कर फेंक सकता है।”

देखते ही देखते सभी बच्चों ने अपने हाथ, गले आदि में पहने हुए काली-काली तबीजों को तोड़कर फेंक दिया। और संकल्प लिया के आगे से हम ऐसी ताबीज को नहीं पहनेंगे ।बीमार होंगे तो डॉक्टर को दिखाएंगे । मम्मी ऐसा करने को कहेंगी तो हम बताएंगे कि इसको पहनने से कुछ नहीं होता है।

बच्चों में अंधविश्वासों से दूर भगाने के लिए उन्होंने एक नई क्रांति पैदा कर दी। इस प्रकार से विद्यालय के अध्यापक चाहें तो वह बच्चों में व्याप्त टोने- टोटके, भूत- प्रेत इत्यादि अंधविश्वासों से बचा सकते हैं। क्योंकि बचपन में पड़ा हुआ संस्कार बहुत प्रभावी होता है।वह मनुष्य को आजीवन जकड़े रहता है। बच्चे अभी गीली मिट्टी की भांति हैं उनसे हम चाहे जिस प्रकार के नए-नए रूपों में ढाल सकते हैं।

समाज में व्याप्त अंधविश्वासों का एक बहुत बड़ा कारण अशिक्षा भी है। पूर्व कालों में समाज में स्त्री शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण हमारी माताएं बहने इस प्रकार के अंधविश्वासों में जकड़ी रहती थी। और यही अंधविश्वास पीढ़ी – पीढ़ी आगे बढ़ता रहता था।

कहां जाता है के एक शराबी पिता से अंधविश्वासी मां ज्यादा घातक होती है। क्योंकि शराबी पिता तो यह चाहता है कि उसके बच्चे शराब न पिए हैं, लेकिन अंधविश्वासी मां अपने बच्चों को और अधिक अंधविश्वासों में जकड़ देती है।

आवश्यकता है समाज में इस प्रकार के अंधविश्वास से बचने के लिए जन जागृति की ‌।इसमें बहुत बड़ी भूमिका विद्यालयों के अध्यापक निभा सकते हैं। वे चाहे तो समाज को अंधविश्वास मुक्त कर सकते हैं क्योंकि वे बच्चों में जैसे संस्कार डालेंगे ,बच्चे उस प्रकार के संस्कारों में धीरे-धीरे ढलने लगेंगे।

यह सही है कि हजारों वर्षों से चली आई कुप्रथाएं अंधविश्वास की जड़ को तोड़ना कठिन है, लेकिन हमारे विद्यालय के अध्यापक यदि संकल्प ले ले तो इस कठिन कार्य को वह बहुत ही सरलता में बदल सकते हैं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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