कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के उर्दू व हिंदी विभाग ने मनाया अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के भाषा एवं कला संकाय के अंतर्गत चल रहे उर्दू विभाग एवं हिन्दी विभाग ने अन्तरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया । इस कार्यक्रम का विषय “उर्दू से दीग़र ज़बानों में तराजुम” रहा,।

लैंग्वेज प्रोफेशनल्स को उनके काम के प्रति सम्मान देने और अनुवाद के वैश्विक महत्व को स्वीकार करने के लिए इस दिन को मनाया जाता है ।

जनाब मनजीत सिंह, प्राध्यापक उर्दू विभाग ने सभी उपस्थित लोगों का पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया और ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की आवश्यकता पर जोर दिया।
मंच संचालन सिया, सतबीर ने किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं समापन डा (मोहतरमा) पुष्पा रानी, अधिष्ठाता भाषा एवं कला संकाय, ने की। उन्होंने इस तरह के संवादों के आयोजन को आवश्यक बताते हुए कहा कि यह न केवल भाषाई विविधता को बढ़ावा देता है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का कार्य भी करता है। डा श्रद्धा राम फिल्लौरी की जन्म दिवस की मुबारकबाद दी।, इन्होंने ओम जय जगदीश हरे की रचना की ।

( मख्य वक्ता जनाब) बलदेव सेतिया, प्रोफेसर NIT KKR, ने तकनीकी और डिजिटल युग में अनुवाद की भूमिका पर चर्चा कि उर्दू भाषा का प्रयोग बीटेक जैसे तकनीकी पाठ्यक्रमों में न केवल भाषा कौशल को बढ़ावा देगा, बल्कि छात्रों को एक समृद्ध सांस्कृतिक अनुभव भी प्रदान करेगा।

इससे वे तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ भाषा और साहित्य के प्रति भी संवेदनशील बनेंगे। तकनीकी कोर्सेस में बच्चों को अतिरिक्त विषय के रूप में उर्दू भाषा को पढ़ाकर एक नई भाषा कौशल तैयार किया जा सकता है जिसे बच्चों की भाषा के प्रति रूचि व जागरूकता बढ़ेगी।

विशिष्ट वक्ता के रूप में डा (जनाब) कुलदीप सिंह, अध्यक्ष पंजाबी विभाग, ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि उर्दू और पंजाबी का अनुवाद न केवल भाषाई समृद्धि को बढ़ावा देता है, बल्कि यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सामाजिक संवाद और ज्ञान के फैलाव में भी महत्वपूरअंग अब, भूमिका निभाता है।

इस प्रकार, अनुवाद की प्रक्रिया को समझना और इसे प्रोत्साहित करना आवश्यक है। हिंदी व उर्दू भाषा में साहित्यिक परम्परा में सामाजिक मुद्दों पर जैसे जातिवाद, धर्म, और राजनीति पर विचार करती हैं।

मंटो, राजेन्द्र सिंह बेदी, प्रेमचंद, और निराला जैसे लेखक अपने समय के सामाजिक परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करते रहे हैं उर्दू और हिंदी साहित्य में महिलाओं की भूमिका की भी चर्चा होती है।

कई लेखिकाएँ जैसे इस्मत चुग़ताई और माया एंजलौ, महादेवी वर्मा आदि ने महिलाओं के अधिकारों और संघर्षों को अपनी लेखनी में उजागर किया है।

कार्यक्रम का आयोजन डा गणपति चन्द्र गुप्त सेमिनार हाल, हिन्दी विभाग, कुवि, कुरुक्षेत्र में हुआ। इस अवसर पर। डा जसबीर ,डा देवेन्द्र बीबीपुरिया , डा लता खेड़ा सूमित रंगा, में सक्रिय भागीदारी निभाई।

इस कार्यक्रम ने अनुवाद के क्षेत्र में जागरूकता फैलाने और उर्दू भाषा के महत्व को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान किया।

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