वात्सल्य की प्रतिमूर्ति-हिन्दी
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति-हिन्दी
मेरी हिन्दी, प्यारी हिन्दी।
सब की है दुलारी हिन्दी।
सब भाषायें दुनिया भर की,
हुई समाहित हिन्दी में।
पर संस्कृत है रही प्रमुख ही,
अपनी प्यारी हिन्दी में।
महावीर हरिश्चन्द्र आदि ने,
समय समय पर अपने ढंग से,
खूब संवारी अपनी हिन्दी।
हर भाषा से प्यारी हिन्दी।
बोलें हिन्दी में जब भी हम,
मन मिश्री घुल जाती।
मां सम लोकाचार सिखाती,
अनुपम नेह लुटाती।
अपने में सहजता समेटे,
जन-जन से जब जुड़ती है,
देश समेकित कर धड़कन में,
बसती नित्य हमारी हिन्दी।
संस्कृत की सबसे प्रिय बेटी,
नहीं किसी से द्वेष करे।
आलिंगन कर भुजा उठाये,
स्वागत सस्नेह विशेष करे।
ज्येष्ठा बन निज देवरानी को,
कर आरती गेह में लाकर,
भुज भर, कर सत्कार, सुझाती
लोकरीति संस्कारी हिन्दी।
हमें जान से प्यारी हिन्दी।
जग में है उजियारी हिन्दी।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)