ग़ज़ल सम्राट विनय साग़र जी
विनय साग़र जी
वही उस्ताद हैं मेरे ग़ज़ल लेखक विनय साग़र
जिन्हें है जानती दुनिया ग़ज़ल सम्राट साग़र जी
हमारी भी ग़ज़ल की तो करें इस्लाह साग़र जी
उसी पथ पर सदा चलता करें जो चाह साग़र जी
बड़ा अनभिज्ञ हूँ मैं है नहीं कुछ ज्ञान भी मुझको
मगर हर पथ की बतलाते मुझे हैं थाह साग़र जी
शरण में आपकी रहकर सदा उस्ताद है माना
यहाँ मुझको पहुँचने में लगे हैं माह साग़र जी
सभी ग़ज़लें नहीं होती हैं मेरी आज भी सुंदर
बढ़ाते हौसला मेरा लिखे जो वाह साग़र जी
नहीं भटके कभी भी शिष्य उनके राह से अपनी
बताते शिष्य सब उनके करें परवाह साग़र जी
बहुत ही दूर था मैं तो ग़ज़ल की दोस्त दुनिया से
यहाँ आया हूँ जब पकड़े हैं मेरी बाँह साग़र जी
विधा कोई न बाक़ी है न जिसका ज्ञान हो उनको
सभी छन्दों की दिखलाते हैं हमको गाह साग़र जी
सँभलकर चल प्रखर थोडा इधर की है डगर टेढ़ी
दिखाते हैं सदा मुझको सुगम वह राह साग़र जी

( बाराबंकी )
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