वृक्ष धरा के मूल | Vriksh Dhara ke Mool
वृक्ष धरा के मूल
( Vriksh dhara ke mool )
पर्यावरण संरक्षण पर कविता
वृक्ष धरा के मूल, भूल से इनको काटो ना
नदी तालाब और पूल, भूल से इनको पाटो ना।।
वृक्षों से हमें फल मिलता है
एक सुनहरा कल मिलता है
पेड़ रुख बन बाग तड़ाग
सब धरती के फूल ,भूल से इनको काटो ना ।।
इनकी करो सदा रखवाली
धरती पर तब आए हरियाली
हरी भरी तब वसुधा शोभित
जीवन के अनुकूल, भूल से इनको काटो ना।।
जीव जंतु पशु पक्षी सारे
वसुधा पर परिवार हमारे
एक दूसरे पर सब निर्भर
इनको करो कबूल, भूल से इनको बांटो ना ।।
चारों तरफ प्रकृति का घेरा
यही रात और यही सवेरा
यही प्रकृति का प्राण आधार
नहीं तो केवल धूल, भूल से इनको बांटो ना।।
कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)
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