
मोहब्बत क्यों जलाते हो
( Mohabbat kyon jalate ho )
मोहब्बत में मोहब्बत को क्यों जलाते हो
एक बार मिलने क्यों नहीं आ जाते हो।
दिल रो रहा हमारा अपना भी रुलाते हो
इतनी दूरियां बढ़ाकर क्या मजा पाते हो।
ये दूरियां कैसी तेरी मजबूरियां कैसी
कसूर क्या है हमारा क्यों नहीं बताते हो।
तड़पता है दिल, दिन रात तुम्हारे लिए
और तुम बेखबर होकर मुस्कराते हो।
इतनी बेरुखी अच्छी नहीं लगती तुम्हारी
जलाकर आग दिल में फिर बुझाते हो।
जलकर खाक हो रहा है दीवाना तेरा
और तुम मोहब्बत को आजमाते हो।
मोहब्बत से सारा जमाना चल रहा है
और तुम मोहब्बत को ही ठुकराते हो।
दिल जलाना ही जब अदा है तुम्हारी
फिर मोहब्बत में क्यों दिल लगाते हो।
कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)
यह भी पढ़ें :-