वही खत वही दीवानगी चाहिए
वही खत वही दीवानगी चाहिए
वही खत वही दीवानगी चाहिए
दोस्त बचपन का वह सादगी भरी जिंदगानी चाहिए
खेल सकुं गुल्ली डंडा, छुपन छुपाई, गुड्डे गुड़ियों के साथ
ऐसी वर्दान कि रब से मेहरबानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
नहीं चाहिए माया ममता
नहीं मकड़जाल कि जिंदगानी चाहिए
वह खेल वह बचपन
वह गांव कि हावा पानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
धिधकार रहा है यह जवानी
नहीं ऐसी जवानी चाहिए
अलबेले चंचल चपल मन घुम सकु
वह सुकुन कि रात रानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
नहीं बनना राजा भोज हमें
हमें बचपन की सुनी सुनाई कहानी चाहिए
छोटी छोटी गलती कर सकुं
बुद्धि हमें बचकानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
बड़ी कष्ट देती है यह जिंदगी
हमें नहीं ऐसी जिंदगानी चाहिए
सिसक सिसक कर रो सकुं मां कि पल्लू में
ऐसी बचपन कि मांगें दिवानगी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
कभी दो थाप तो
कभी गोद में बैठने कि रवानगी चाहिए
धोती कुर्ता साड़ी के साथ लिपट कर खेल सकुं
मेरे गांव कि वह गली पुरानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
क्या करूंगा यह सब
बचपन का वह चॉकलेट गुड़ियां रानी चाहिए
रहुंगा मस्तमौला
वह समय पुरानी चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
जी भर गया है इस दुनिया से
मुझे बचपन वाला सैतानी चाहिए
कर सकों कोई सहयोग मेरा तो कर
मुझे नहीं यह दुनिया की मानहानि चाहिए
वही खत वही,,,,,,,
संदीप कुमार
अररिया बिहार