वक़्त

वक़्त

वक़्त

**

वक़्त ने वक़्त से जो तुझको वक़्त दिया है,
हृदय पर रखकर हाथ बोलो-
साथ तूने उसके क्या सुलूक किया है?
कभी गंवाए हो बेवजह-
नहीं कभी सुनी उसकी,
ना ही की कभी कद्र ही;
यूं ही तेरे पांव से जमीं नहीं खिसकी।
पढ़ाई के दौर में लड़ाई में रहे व्यस्त,
देखो कहीं के ना रहे, पड़े हो अलस्त।
वक़्त की नजाकत को तुम-
अब भी नहीं समझ रहे हो,
बेवजह सबसे उलझ रहे हो।
वक़्त पल पल बीत रहा है,
महत्त्व जो इसकी समझ रहा है;
वही दौड़ में जीत रहा है।
अब भी क्यों नहीं सीख रहे हो?
बेवजह नींद ले रहो हो।
गति से इसके गति मिलाओ,
प्रयास करो, तुम भी जीत जाओ।
द्वार सबके लिए खुला है,
छेड़-छाड़ की नहीं है गुंजाइश-
ऊपर बैठा खुद खुदा है।
वक़्त न जाने श्याम श्वेत,
नहीं है उसको किसी से द्वेष।
जो उसकी माने पहुंचा दे चांद,
वरना रहे नींद हराम।
विचलित दिखे सुबहो शाम,
ऐ मानव!
वक़्त की कीमत पहचान।
✍️

नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें : 

उठे जब भी कलम

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *