आज मुझे वह समय क्यों याद आया जब सालों पहले मेरे शिक्षक रमेश चंद्र जी विकास हाई स्कूल भावड में टीचर हमें पढ़ा रहे थे कि उनके किसी प्रियजन के आने पर वह हमें छोड़कर कुछ देर के लिए क्लास से बाहर चले गए, टीचर की अनुपस्थिति का बच्चों पर क्या असर होता था।
हुआ यूं कि क्लास के सभी छात्र अपनी-अपनी बातों में इतने व्यस्त थे कि भूल गए कि कुछ कदम की दूरी पर माननीय शिक्षक हैं, आवाज भी नहीं सुनाई दी।
क्लास के शोर से वे इतने परेशान हो गए कि उन्होंने डांट लगा दी बच्चों को ऊंची आवाज में बेंच पर खड़े होने के लिए कहा, फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने बच्चों को बैठने का आदेश दिया, चुप रहने का आदेश दिया।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस समय उन्होंने किसी भी बच्चे को हिलने तक की इजाजत नहीं दी, खांसने की आवाज भी उनके लिए किसी बम विस्फोट से कम नहीं थी, सभी छात्र अपने होंठ बंद कर काफी देर तक चुप रहे और शिक्षक गुस्से में बड़बड़ाते हुए कुर्सी पर बैठ गए।
जब पीरियड की घंटी बजी तो वे ऐसे थे “बच्चों, वह मंद हवा बनो जो मनुष्यों में शांति लाती है, यह शांत हवा आधे-मरे हुए मनुष्यों को जीवन देती है, एक तेज़ हवा मत बनो जो अपनी आवाज़ उठाती है और पृथ्वी पर तेज़ तूफ़ान का रूप ले लेती है। अहंकार का कारण बनता है पेड़ों को उखाड़कर विनाश और विनाश हो रहा है, मजबूत मकानों की नींव को नष्ट ना करना।
यदि आप अपना भला चाहते हैं और भविष्य को भी संवारना चाहते हैं, तो चुप रहना सीखें क्योंकि चलती जीभ सुनने और सीखने के सभी रास्ते बंद कर देती है।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )