161 वाँ मर्यादा महोत्सव
तेरापंथ धर्मसंघ का महोत्सव मर्यादा महोत्सव हैं । यह समूचे विशव में एकमात्र ऐसा अद्भुत उत्सव हैं । यह हमारे मर्यादा महोत्सव की एक निष्पति याद दिलाना है कि जिन्दगी के हर कदम पर मर्यादाओं का ख्याल रखना जरूरी है ।कभी मर्यादाओं का उल्लंघन कर कदम नहीं रखना हैं ।
मर्यादाएं जिन्दगी का बंधन नहीं बल्कि व्यवस्थित रूप से जीने की कला के नियमों का स्पंदन है। चाहे परिवार हो, समाज हो या हो राष्ट्र आदि स्वस्थ संरचना के लिए मर्यादाओं में रहना ही श्रेष्ठ है ।
मर्यादाओं का जहाँ उल्लंघन हुआ है वहाँ शालीनता के सारे बंधन टूटे हैं ।जीवन में उच्चछृंखलता आ जाएगी तो जीवन की गाड़ी पटरी से उतर जाएगी इसलिए हर चीज की सीमा और मर्यादा का ज्ञान होना जरूरी है ।
वह बिन मर्यादा यह जिन्दगी अस्त-व्यस्त हो जाती है और मान सन्मान खो जाता है क्योंकि भोजन की तरह सीमा से अधिक हर चीज हानिकारक हैं जो जीवन से कोई न कोई तत्व नदारद करती है ।
सही चिन्तन को लेकर आगम-आराधक महाश्रमण जी मतिमान है , समन्वित चिन्तन में धर्म और विज्ञान , आज्ञा-अनुशासन , मर्यादा के प्रयोक्ता द्वारा प्रदीप्त हुआ शिखरों चढ़ता तेरापंथ धर्मसंघ जिसमें मर्यादा अनुशासन की सतत प्रहरी हैं ।
तेरापंथ धर्मसंघ का यह मर्यादा महोत्सव याद दिलाता है कि संघ वर्द्धमान है ।इन्हीं मर्यादाओं की बदौलत ,इन्हीं मर्यादाओं ने संघ को इतनी ऊँचाईयाँ दी हैं । इससे तेरापंथ धर्म संघ में आध्यात्मिकता की, सुसंस्कारों की आदि मजबूती से सदैव साथ में हैं ।
आचार्य भिक्षु जिनकी बनाई हुईं मर्यादाओं के बल पर व उनका कड़ाई से पालन करने पर यह सम्भव हुआ हैं । अतः हम यह कह सकते हैं कि मर्यादाएं संघ की मजबूत जीवन की आधारशिला हैं। इन्हीं से हमारी सतत प्रगति का मार्ग खुला है।
शत – शत नमन आचार्य भिक्षु को, शत – शत नमन उत्तरवर्तीय आचार्यों को जिन सबने इसका कड़ाई से पालन किया और करवाया । मर्यादाएं भंग करने वाले को बेझिझक ज्यादा उचित दंडात्मक उपालम्भ भी दिया हैं ।
तेरापंथ धर्मसंघ के इन मर्यादाओं के चिन्तक, अविष्कारक, तेरापंथ के आद्यप्रवर्तक आचार्य भिक्षु को मेरा बारम्बार नमन, जयाचार्य को शत – शत नमन , उनकी यह दूरगामीसोच जिससे हर वर्ष यह मर्यादाओं का महोत्सव मनायाजा रहा है , जो हमें स्मरण कराता है कि संघ की पवित्र मर्यादाओं का और व्यक्तिगत जीवन में भी मर्यादाओं के महत्व का प्रेरणा देता है ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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