कठपुतली | Kavita kathputli
कठपुतली
( Kathputli)
ताल तलैया भरे हुए है, भरे है नयन हमार।
आए ना क्यों प्रेम पथिक, लगता है भूले द्वार।
उमड घुमड़ कर मेघ घिरे है, डर लागे मोहे हाय।
बरखा जल की बूंदें तन मे, प्रीत का आग लगाय।
बार बार करवट लेती हूँ,मन हर पल घबराये।
आ जाओ इस बार सजनवा, रैना बीती जाये।
मध्य रात्रि में पपिहा बोले, शुभ संकेत ना आए।
खड़ी खड़ी यौवन के संग, हुंकार पिघल ना जाए।
क्यों कठपुतली बना दिया मोहे, तपन सही ना जाए।
यह विरहा की आग मेरे, तन मे जब आग लगाए।
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कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )