Kavita itishree

इतिश्री | Kavita itishree

इतिश्री

( Itishree )

 

धीरे धीरे खत्म हो रहा, प्यार का मीठा झरना।
उष्ण हो रही मरूभूमि सा दिल का मेरा कोना।

 

प्रीत के पतवारो ने छोडा,प्रेम मिलन का रोना।
अब ना दिल में हलचल करता,मिलना और बिछडना।

 

पत्थर सी आँखे बन बैठी, प्रीत ने खाया धोखा।
याद तो आती है उसकी पर, मीठा नही झरोखा।

 

प्रीत मुझे तुमसे ही है पर, तुमने नही ये सोचा।
प्रीत को मजबूरी समझा,इस बात का ही है रोना।

 

छोटे से इस जीवन में, यादों के सहारे जी लेगे।
पर अपने सम्मान को आखिरी,दम तक न हम छोडेगे।

 

जीवन के इस रणभूमि मे, तपती धूप मे चल लेगे।
दिल पर पत्थर रख करके,तुम बिन भी हम जी लेगे।

 

मिलना ना होगा अब तुमसे,ये ही व्रत हम रख लेगे।
पर सम्मान त्याग कर कैसे, हुंकार भला ये जी लेगे।

 

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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भ्रम | Poem bhram

 

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