अम्मा | Amma
अम्मा
( Amma )
देखते ही देखते बाबूजी चल बसे और माँ बूढी से और ज्यादा बूढी हो गयी… आँखे उदास हो गयी पर चेहरे की चमक कम ना हो पायी। अगर आँखों को देखा जाए तो अब भी उसमें ळही प्यार वात्सल्य और अपनापन है जो मै देखता हूँ समझता हूँ पर चाह कर भी पूरा नही कर सकता।
माता पिता की बूढी आँखे अपनी संतति से चाहती क्या है बस यही ना कि सब खुश रहे आनन्दमय जीवन बिताए और सभी साथ मिलजुल कर रहे।और अगर दूर है तो मुझसे मिलने आते रहे नही आ पाए तो कम से कम फोन करके बातें तो करे।
अब भी देखता हूँ उनको जब कोई अपना बात करके फोन रखता है तो आँखों के कोर से आँसू छलक ही जाता है।
भाग्यशाली वो नही जिसके पास धन दौलत या सुविधाओ का साम्राज्य है भाग्य शाली वो होते है जिसके बेटे के साथ बहु भी आदर्श हो। पर सभी को ये गौरव प्राप्त नही होता।
कुछ महिलाए ऐसी भी है जो चाहती तो है कि उनका पुत्र राम बने पर अपने श्रेष्ठो को सम्मान दे पर अपने पति और माता पिता के भावुक समंबन्धो को नही समझ पाती।
मै अपनी माता की दृष्टि मे सर्वश्रेष्ठ हूँ जो बिना कहे ही उनकी हर बातों को समझ लेता है। कब किसकी जरूरत है किससे मिलना चाहती है कब क्या चाहती है सब… पर पता नही क्यो कभी कभी चाह कर भी उनकी ये इच्छा पूरी नही कर पाता की उनके सभी बेटा बहुए बेटी दामाद उनके बेटा बेटियो को एक साथ दिखा सकूँ….
खैर छोडो सभी को सबकुछ कहाँ मिलता मिलता है फिर सभी का अहम उनको एक कर भी नही सकता। पर एक लेखक और साहित्यकार के रूप मे मुझमे संवेदनशीलता अर्थात मार्मिक भाव कुछ ज्यादा ही है जो मै किसी से कह तो नही सकता पर लिख तो सकता हूँ…..
कुछ दिन पहले उनकी तबियत खराब है कि जानकारी होने पर चाचा का लडका आया था…. अम्मा तबियत कैसी है पुछते हुए पैर दबाने लगा बहुत देर तक दबाता रहा वो कहती रही छोड द बाबु.. पर वो दबाता रहा….उसके जाने के बाद वो लगातार रोती रही
हम बहुत छोटे थे जब बाबु जी और चाचा लोगो मे बँटवारा हुआ था वो एक घृणित बँटवारा था जिसकी कल्पना ही घृणित है पर उसके बाद भी अम्मा को सभी ने सम्मान ही दिया चाहे चाचा चाची लोग हो या उनके बेटे बेटिया हो….उनकी ममता कभी भी किसी के लिए कम नही हुई।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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