
निर्मल मन के दर्पण में
( Nirmal man ke darpan mein )
पल रहे भाव अनुपम निर्मल मन के दर्पण में।
सद्भावों की गंगा बहती प्रेम सुधारस अर्पण से।
भाईचारा स्नेह बाटो भरो अनुराग आचरण में।
विनय शील आभूषण है रहे नर हरि शरण में।
निर्मल मन के दर्पण में
मन मंदिर में करुणा के दीप जलाते दया धर्म के।
खुशियां बरसती हृदय में सेवा त्याग शुभ कर्म से।
उजियारा हो घट घट में भाव भरे हो समर्पण के।
हर्ष मौज खुशी आती परोपकार पोषण भरण से।
निर्मल मन के दर्पण में
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )