dharmik rahe upvas kare

हमारे हिंदू धर्म में अपने ईष्ट को प्राप्त करने के लिए और उनको प्रसन्न करने के लिए अन्न जल त्याग करके उपवास रखने की परंपरा है जिसका आजकल उपहास बनाया जा रहा है।

यह एक ऐसी विधि है जिसमें हम अपनी इंद्रियों पर काबू रखने के लिए अन्न और जल का त्याग करते हैं ऐसा माना जाता है कि उपवास रखने से मन और तन दोनों स्वस्थ रहते हैं यदि उपवास को नियम पूर्वक किया जाए तो हमारे हिंदू धर्म में ऐसे तो कई मान्यताएं है उनमें से एक मान्यता यह भी है कि सूरज अस्त होने से पहले ही भोजन कर लेना चाहिए ।

उपवास में भी संभवत अन्न का त्याग करते हैं और कुछ फल दूध या विशेष आहार लेकर हम पूरे दिन भगवान का स्मरण कर अपने ईष्ट को प्रसन्न करते हैं और शक्ति की आराधना भी करते हैं।

नवरात्रि के दिन चल रहे हैं ऐसे में देखने को आ रहा है कि कई लोग उपवास के नाम पर कई प्रकार के पकवान जिसे हम व्रत की थाली भी कहते हैं बनाकर कई बार कहते हैं मेरा बिल्कुल ऐसा कहना नहीं है कि लोगों में श्रद्धा नहीं है परंतु इतना सारा भोजन करने के बाद उपवास उपवास कहां रह जाता हैं।

उपवास = उप + वास (पास का + रहना )
स्वयं के पास रहकर ईश्वर की आराधना करना ना कि भर भर के भजन करना और शरीर का पाचन तंत्र बिगड़ना।
हमारा शरीर मैं पाचन तंत्र एक मशीन की तरह कार्य करता है हम रोज खाना खाते हैं और इस भोजन को बचाने के लिए हमारे शरीर को भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है देखा जाए तो हमारा शरीर का पाचन तंत्र रोज ही कार्य करता है।

विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाए तो इस कार्य प्रणाली में एक दिन का अवकाश जरूर होना चाहिए । हमारे बड़े बुजुर्ग इस बात का ज्ञान रखते थे और इसीलिए ही उन्होंने धार्मिक दृष्टि से सप्ताह में एक बार भोजन त्यागने कर अपने ईश्वर की भक्ति में मग्न रहने के लिए उपवास की परंपरा को बनाए ताकि हमारे बच्चों में यह बनी रहे।

परंतु इतने अच्छे संस्कार का आज समाज में सिर्फ और सिर्फ मजाक बनकर रह गया है। व्यंजनों के नाम पर तरह-तरह के आइटम पर उसे जाते हैं उपवास की थाली भी बाजार में मौजूद है और उपवास के नाम पर दिनभर चिप्स के पैकेट मखाने ड्राई फ्रूट की खीर इत्यादि का सेवन करना आइसक्रीम खाना भी आजकल उपवास में अपना स्थान बना चुका है ।

इन सब चीजों को देखते हुए तो यही प्रतीत होता है की जैसे कि उपवास जैसे इस पवित्र कर्म का उपवास उड़ाया जा रहा है जो कि हमारी आज की पीढ़ी दिनभर तरह-तरह के खाने पर ध्यान देती है वह शायद उपवास ही इसलिए करती है कि उनको नॉर्मल जीवन से हटकर व्यंजन और अलग स्वाद के लिए एक अवसर प्राप्त हो।

जबकि उपवास का अर्थ होता है हमें हमारी इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर अपने-अपने ईष्ट को प्रभु को प्रसन्न करना साधना करना उपवास के कारण हमारा पाचन तंत्र तो सुधरता ही है बल्कि हमारा मन में भी अच्छे विचार आते हैं।

परंतु बदलते इस परिवेश में आज उपवास एक उपवास बनकर रह गया है लोग तरह-तरह के पकवान और भोजन सामग्री के चलते कई प्रकार के व्यंजनों का स्वाद बड़े चाव से चखते हैं और सूरज ढलने के बाद भी भोजन करते हैं इस प्रकार का सकते हैं की उपवास की जो धरना हमारे पूर्वजों में शुरू की थी वह आज उपवास का पात्र बन चुकी है।

 

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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