नयन नीर भरा समंदर | Nayan par Kavita
नयन नीर भरा समंदर
( Nayan neer bhara samandar )
टप टप नीर नैन सूं टपका ये भरा समन्दर हो जाता है।
सागर के खारे पानी को आंखों का पता चल जाता है।
खुशियों का सैलाब हृदय में उमड़ घुमड़कर आता है।
नैन नीर भरी सरिता बहती भाव भरा मन हरसाता है।
टूट पड़ा हो पहाड़ दुखों का संकट सर पे छा जाता है।
मन की पीर द्रवित हो जाती नयन नीर बरस आता है।
नयनो का खारा पानी जब अश्रु धार बनकर बहता है।
कभी नैन का मोती बनता कभी पीर मन की हरता है।
कभी दबा कभी छुपा सा कभी लुढ़कता मोती बनकर।
कभी हंसी में कभी गमों में कभी झलकता दुख सहकर।
कभी सब्र का बांध टूटता कभी प्यार भरा सागर होता।
कहीं खुशी का नहीं ठिकाना संकट में पड़ा कोई रोता।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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