Samvidhan ka Nirmata
Samvidhan ka Nirmata

संविधान का निर्माता

( Samvidhan ka nirmata ) 

 

ख़ुदा का नूर बनकर आया वह संविधान का निर्माता,
सबको समान अधिकार मिले जिनका ये अरमां था।
चुप-चाप गरल पीता रहा पर दिलाकर रहा समानता,
ख़ुद पढ़ो फिर सबको-पढ़ाओ ऐसा जो कहता था।।

तुम आज झुक जाओ कागज की पुस्तकों के सामने,
फिर कल को देखना दुनिया झुकेगी आपके सामने।
आपका इनसे अच्छा हम दर्द कोई भी ना हो सकता,
मुश्किलें आसान होगी जब पुस्तकें होगी ये सामने।।

आओ अब कुछ तो अपनें आप में यह बदलाव करों,
शेर की तरहां घर से निकालो व वैसे-ही दहाड़ करों।
आखिर कब-तक भीगी बिल्ली बनकर घरों में रहोंगे,
वैसे ही बहुत देर हो गई अब निर्णय में देर ना करों।।

चाहें रुखा सूखा खालों पर दोस्त क़लम को बना लो,
ना छोड़ना उसका साथ इस-तरह की ढाल बना लो।
लिख डालो तुम इतिहास कि‌ वह फरिस्ता कहलाओ,
सबसे पहले इसके लिए ये पढ़ाई की आदत डालो।।

जागो और जगाओं सब अपना अपना आत्मविश्वास,
हिन्दू मुस्लिम, सिख ईसाई सब लो आराम से श्वास।
हम सभी के लिए समान है ये लोकतंत्र का संविधान,
बाबा साहब लड़ता रहा जिसके लिए अंतिम श्वास।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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