इंसाफ कहाँ से पाऊं | Insaaf Kahan se Paoon

इंसाफ कहाँ से पाऊं

( Insaaf kahan se paoon )

 

हे ईश्वर तू ही बता

अब मैं कहाँ पे जाऊं,

न्याय हो गया इतना महंगा

इंसाफ कहाँ से पाऊं।

एक जो रामचंद्र थे

जो पिता के वचन निभाते थे,

गए थे वनवास १४ वर्ष तक

पुत्र धर्म निभाते थे।

ऐसा वचन निभाने को

मैं पुत्र कहाँ से लाऊं,

न्याय हो गया इतना महंगा

इंसाफ कहाँ से पाऊं।

एक थे वो वीर बलि

जो अपना वचन निभाते थे,

लेने जिसकी स्वयं परीक्षा

भगवान विष्णु वामन रूप में आए थे।

ऐसे वचन निभाने वाले

वीर बलि कहाँ से लाऊं,

न्याय हो गया इतना महंगा

इंसाफ कहाँ से पाऊँ।

एक थे राजा हरिश्चंद्र

सत्य की राह पर चलते थे,

राह में हो कितनी भी बाधा

कभी न विचलित होते थे।

ऐसे सत्यवादी हरिश्चंद्र को

कलयुग में ढूंढ कहाँ से लाऊं

न्याय हो गया इतना महंगा

इंसाफ कहाँ से पाऊ

 

 नवीन मद्धेशिया

गोरखपुर, ( उत्तर प्रदेश )

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