टूटता आशियाना | Kahani Tootata Aashiyaana
चारों तरफ अफरातफरी मची हुई है। पूरे मार्केट में सन्नाटा छाया हुआ है। सभी सर पर हाथ धरे बैठे हुए हैं। सरकारी फरमान जारी हो चुका है। सभी के मकान दमीजोख होंगे।
रामू ने अभी किसी प्रकार से नया घर बनाया था। उसकी बहुत चाहत थी कि रोड पर एक कुटिया बनाकर दाल रोटी का जुगाड़ किया जाए । इसके लिए उसने अपना गांव का मकान भी बेच दिया था।
मकान क्या एक प्रकार से तहखाना ही बन सका था?फिर भी उसको बनाने के लिए उसे गांव की पुराने मकान को बेचना पड़ा था। उसी में पति-पत्नी एवं बच्चों के साथ अपनी छोटी सी चाय पान की दुकान रखकर रोटी दाल का जुगाड़ करने लगा था।
पड़ोसी से झगड़े के कारण भी दीवाल भी अपने हाथ से ही उसने आड़ी तिरछी बनाई। जब से उसका घर सड़क चौड़ीकरण में आ गया। तब से वह कभी रात में सो नहीं सका।
वैसे वह अपना घर रोड से एकदम पीछे बनाया हुआ था। उसे क्या पता था कि साहब जी को अब सीधे ही चलना है? सड़क सीधी करने के चक्कर में उसका घर सड़क पर आ गया। उससे क्या पता था सड़क वाले एक दिन सड़क पर आ जाएंगे। आज वह बहुत पछता रहा था कि गांव के मकान ना बेचें होते तो बहुत ही अच्छा होता। ना घर के रहे ना घाट के हुए।
उसे नहीं पता था कि साहब जी इस देशवा को विकसित राष्ट्र बनावत हैं। अब भैया विकसित राष्ट्र बनावइ के अहइय तो टेढ़ी मेरी रोड़ पर थोड़ी चल सकिहै । ओकर लिए तो एकदम सीधी रोड चाहीं। कहीं टेड मेढ़ हुईं तो लोग लड़ न जाइहइ।
वह सोच रहा साहिब जी के चिट्ठी लिखी कि -” साहिब जी! रोडिया जैसे जात बा वैसे जाइदा। दोनों तरफ से बराबर लइला तो हमार घर भी बच जाए। इ रोड सीधा करई के चक्कर में कहु तो आनंद मनावत है केहू के सर्वस्व बर्बाद हुई जात बा।
तनी टेढ़ी-मेढ़ी ही चलीहइ तो का दिक्कत बा। आजा पुरखा तो इही पर चली चली के जिंदगी गुजार दिहेन।”
उसे किसी ने बताया कि ऐसा है हमारे साहब जी को अक्सर विदेशी दौरे पर जाना पड़ता है। कभी न्यूयॉर्क , तो कभी पेरिस, तो कभी लंदन।
पहली बार जब वह लंदन गए तो वहां की फर्राटा भागति गाड़ियों को देखकर उनकी आंखें चौंधिया गई थी। उनको भारत की सड़कों से घृणा होने लगी । उन्होंने संकल्प ले लिया था कि लंदन से लौटने के बाद ही भारत की सड़कों को चमचमा देंगे ।
उसके लिए चाहे हमें कितने भी वृक्षों एवं घरों को जमींदोज क्यों न करना पड़े। यही कारण है कि लंदन से लौटने के बाद साहब जी ने सबसे पहले फैसला किया कि देश को पेड़ों एवं जनसमूह से वीरान करके सड़कों का जाल फैलाएंगे।”
साहब जी का संकल्प भीष्म प्रतिज्ञा होती है।
यही कारण है कि साहब जी के इरादों को देखकर देश में सड़क पर घर बनाकर रहने वाले सभी के दिलों की धड़कनें तेज हो गई हैं। कइयो आशियाना टूटे की से उनका दिल भी टूट गया। न जाने जिंदगी की स्वांस कब रुक जाएं पता नहीं ।
कई के तो अपने आशियाना को जमींदोज होने की खबर से कलेजा फट सा गया । आंखें पथरा गई हैं। उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है क्या करें? कैसे होगा?
साहब जी के परम भक्तों के भी जब आशियाने टूटने की खबरें आने लगी तो उनका भी धैर्य टूट गया। उन्हें लगने लगा कि राज सत्ता किसी की नहीं होती है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )