नशा | Kavita Nasha
नशा
( Nasha )
नशा
एक जलती चिता,
नशे का नशा,
जिस किसी को लगा,
कवेलू तलक,
उसके घर का बिका!
नशा ——
एक जलती चिता,
नन्हें बच्चों का भविष्य,
दांव पर लगा!
घर स्वर्ग से नरक का रूप,
धारण करने लगा!
अन्न मिलता नहीं,
तड़पते हैं बच्चे भूख से,
विधवा उसकी पत्नी,
लगती है रंग रूप से,
मौत की कामना करती है वह,
मौत उसको आती नहीं,
दुःख दर्द की ज़िंदगी,
इक पल भी भाती नहीं!
सोचती है पिया घर छोड़ दे
किंतु ———-
पिया घर छोड़ जाती नहीं,
क्योंकि ———
भय से भयभीत रहती है वह,
देख हर नर की आंखों में वासना!
नशा —–
एक जलती चिता,
हे प्रभु!
हम सब को तू ,
इस से बचा,
दिखा सुख समृद्ध,
जीवन की दिशा!
आमीन —-
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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