अपनापन

अपनापन | Kavita Apnapan

अपनापन

( Apnapan )

सफर करते-करते कभी थकती नहीं,
रिश्ता निभाने का रस्म कभी भूलती नहीं,
कभी यहाँ कभी वहाँ आनातुर,

कभी मूर्खता कभी लगता चातुर्य,
समझ से परे समझ है टनाटन,

हर हालत में निभाते अपनापन,
किसी को नहीं मोहलत रिश्तों के लिए,

कोई जान दे दिया फरिश्तों के लिए,
कोई खुशी से मिला,कोई मुंह फेर लिया,

कोई दिनहार बना कोई गमगीन कर दिया।
पर अफसोस का सफर छोटा निकलता,

मनमोहन दिल बिंदास फिर निकल पड़ता।
आदतन खुशी गम को जगह देती नहीं,

टूटकर कभी पूरी बिखरती नहीं ।
कभी खुद का संकुचन कर लेती,

कभी दूसरे का संसोधन कर देती ।
भूलती नहीं, पर कभी अपना धरम,

निरंतर प्रयासरत, सुचारु हो अपनापन,
प्रेमिल रिश्तों का आधार ही सिखाता सब जतन ।।

प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई

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