घर बेटी का | Kavita Ghar Beta Ka
घर बेटी का
( Ghar Beta Ka )
आज घर में सन्नाटा छा गया।
जब बेटी ने प्रश्न एक किया।
जिसका उत्तर था नही हमारे पास।
की घर कौनसा है बेटियों का।।
पैदा होते ही घर वाले कहते है।
बेटी जन्मी है जो पराया धन है।
बेटा जन्मता तो कुल दीपक होता।
पर जन्म हुआ देखो लक्ष्मी का।।
मन में बेटी के बात ये बैठे गई।
भूल नही पाती अपनी ता उम्र।
प्रगट नही करती इस बात को।
और रहती खुश हर हालत में।।
जब तक रहती माँ-बाप के संग।
तब तक बनी रहती पराया धन।
सुसराल में वो पराये घर से आई ।
क्या उसके दोनों घर भाड़े के है।।
दर्द बहुत तब होता उसको।
जब सुसराल से ठुकराई जाती।
तब मायके वाले कुछ दिन रखते ।
फिर वो भी उपेक्षा करने लगते।।
प्रश्न वही फिर घूमकर खड़ा हो गया।
की अखिकार बेटी का घर है कौनसा।
जिस घर में जन्मी और पली बड़ी हुई।
या फिर वो जहाँ ब्याह कर पहुंची।।
बेटी बेटा के बारे में हम
फर्क आज भी करते है।
पर कुछ तो अंतर आया है
उनके शिक्षित होने के कारण।
इसलिए आत्मनिर्भर बनने लगी
अपनी शिक्षा आदि के बल पर।
और छोड़ दोनों घरों को उसने
बना लिया अब अपना घर।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई