मूल्य

( Muly ) 

 

रात हो अंधेरी सागर हो गहरा
भटकी हुई नैया का दूर हो किनारा
साहिल मे तब भी बाकी हो हिम्मत अगर
तो हवा भी बन जाती है उसका सहारा

हौसले से किनारा कभी दूर नहीं होता
ठान ही लिया हो जिसने वह मजबूर नहीं होता
धाराओं का तो काम ही बरसाना है नभ में
संकल्प के साथ बढ़ते कदम कमजोर नहीं होते

माना कि बहुत दूर है रात से भोर का सफर
जुगनू ,चांदनी भी तो हैं साथ आपके
अकेले हुए ही कब आप इस शहर में
शराबी और पागल भी तो है दीप की तरहतरह

जुनून होना चाहिए मुकाम को छू लेने के लिए
मुश्किल नहीं कुछ भी हासिल करने के लिए
व्यवधान तो मिलते ही हैं बाधक बनकर
जरूरी है सजग रहना आगे बढ़ाने के लिए

ऊंचाई कोई भी हो उठी है जमीन से होकर ही
खड़े हैं आप भी तो इसी जमीन पर ही
तब असंभव कुछ भी क्यों लग रहा है तुम्हें
बस समझ लो मूल्य, आए हैं जीवन में जो लम्हे

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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