आओ जी लें प्रेम से कुछ पल

आओ जी लें प्रेम से कुछ पल

आओ ,जी लें प्रेम से कुछ पल

अंतस्थ वृद्धन अंतराल ,
निर्मित मौन कारा ।
व्याकुल भाव सरिता,
प्रकट सघन अंधियारा ।
पहल कर मृदु संप्रेषण,
हिय भाव दें रूप सकल ।
आओ, जी लें प्रेम से कुछ पल ।।

भीगा अंतर्मन संकेतन,
जीवन पथ रिक्ति भाव।
अस्ताचल स्वप्न माला,
धूप विलोपन छांव ।
अब विस्मृत कर भूत काल,
नेह पथ पर रहें अटल ।
आओ, जी लें प्रेम से कुछ पल ।।

जब विमल मृदुल घट,
होता दुर्भावना शिकार ।
सिहर उठता विश्वास सर,
उकर छल कपट विकार ।
तब स्पंदन आशा उमंग ,
जगाएं साहस आत्मबल ।
आओ ,जी लें प्रेम से कुछ पल ।।

निष्ठुरता मदमस्त बन,
जब निश्छलता ठुकराती ।
ओज ढक यथार्थ का,
असत्य गले लगाती ।
तब स्नेहिल स्पर्शन प्रियतम,
दर्श अथाह आनंद वकल ।
आओ, जी लें प्रेम से कुछ पल ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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