डॉ ऋतु शर्मा ननंन पाँडे की कविताएं | Dr. Ritu Sharma Pandey Poetry

स्त्री

चूल्हा मिट्टी का हो या गैस का
रोटी बनाते समय
उँगलियाँ मेरी ही जली है
जली उँगलियों के साथ
चेहरे पर मुस्कान लिए
तुम्हारी स्वादिष्ट थाली
मैंने ही हमेशा सजाई है

जब जाते तुम काम पर
सारे दिन की थकान भूला
शाम को दरवाज़े पर मेरी ही
निगाहें तुम्हें खोजती हैं

गर्भ धारण से लेकर
प्रसव पीड़ा तक
सब सह लेती हूँ मैं
एक तुम्हारे भरोसे

तानों से छलनी हुए
ह्रदय में भी
तुमको नर्म और गर्म
कोना देती हूँ मैं अहसासों का

सिर्फ़ एक बेटी ही नहीं
बहूँ, पत्नी, माँ न जाने
एक ही पल में
कितने रिश्तों को
जीति हूँ मैं

कभी चौपड़ में दांव लगने को बाध्य
कभी धरा में समाने की मजबूरी
हर बार मैं ही छली जाती हूँ
हर बार कुलटा, चरित्रहीन
मैं ही कहलाती हूँ

फिर भी हर बार
एक नये जन्म मैं
फिर से धरती पर आती हूँ
क्यों की मुझे पता है
जिस दिन मेरा अस्तित्व
ख़त्म हो जाएगा
पुरूष तुम और तुम्हारा पौरुष
दोनों ही अर्थ हीन हो जाएगा ….

डॉ. ऋतु शर्मा ननंन पाँडे
( नीदरलैंड )

*कवियित्री व समाजसेवी

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