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प्रियंका सौरभ की कविताएं | Priyanka Saurabh Poetry
देश हुआ बेचैन। भारत के उस पूत को,मेरा प्रथम प्रणाम।सरहद पर जो है मिटा,हाथ तिरंगा थाम॥ सींच चमन ये साथियों,खिला गए जो फूल।उन वीरों के खून को,जाना तुम मत भूल॥ आओ मेरे साथियों,कर लें उनका ध्यान।शान देश की जो बने,देकर अपनी जान॥ फ़िल्म-खेल का ही चढ़ा,है सब पर उन्माद।फौजी मरता देश पर,कौन करे अब याद॥…
फिर क्यों?
फिर क्यों? हम बंटेंगे तो कटेंगे फिर क्यों बंटे हैं? जातियों में धर्मों में ऊॅंच में नीच में शिकार हो रहे हैं – केवल गरीब लुट रहे हैं – केवल बदनसीब मारे जा रहे हैं – पेट के भूखे। लोकतंत्र की पद्धतियाॅं ऐसी नहीं है जो तोड़ती ही नहीं झुका देती है पेट के बल …
आनंद त्रिपाठी की रचनाएँ
लिखो नवल श्रृंगार फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपारउठो कवि इस भोर में लिखो नवल श्रृंगार लिखो नवल श्रृंगार प्रेम की अनुपम धुन मेंहो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन में अरुणोदय की झलक तुषार की कैसी मालाभ्रमर गीत यह मधुर गान है रस वाला यही अवधि है बजें दिलों के तारउठो कवि…
कागा की क़लम से | Kaga ki Kalam Se
शरद ऋतु शीत लहर का क़हर जारी थार थर्रा उठा ,ठंड में ठिठुरन क़हर जारी थार थर्रा उठा ! पोष माघ के दोनों महिने दहला देते दिल ,कांप जाता तन मन भारी थार थर्रा उठा ! रेतिले धोरे टीले बालू जमी रेत कोहरा छाया ,धूजणी छूटी जो़र बर्फ़ बारी थार थर्रा उठा ! जाड़े का…
नफरत भरी है जमाने में
नफरत भरी है जमाने में नफरत भरी है जमाने मेंदर्द भरा है दिवाने मेंवह मजा नए में अब कहांजो मजा होता था पुराने में।। पैसा है तो अब प्यार हैमोहब्बत भी एक व्यापार हैइंतजार कौन करता हैजब बेवफा सरकार है।। दौर कहां अब पुराना हैदेवदास जैसा कोई दीवाना हैअब तो पैसे से दिल्लगी होतीप्यार तो…
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक दिवस
भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक दिवस धर्म मार्ग को जीवन आचरण में अपनायें ।विकट – विकटतम मार्ग से पार लगायें ।कही न रुके सदैव आगे बढ़ते जायें ।मानव जीवन से मोक्ष पायें ।प्रभु पार्श्वनाथ की तरह मंजिल पायें ।धर्म से भावना प्रबल रहती ।गलत आचरण से कोसों दूर रहते ।मन में निर्मल सरिता की भावना…
यह जो उर्दू ज़बान है साग़र
यह जो उर्दू ज़बान है साग़र मीर ग़ालिब की जान है साग़रयह जो उर्दू ज़बान है साग़र उर्दू सुनते ही ऐसा लगता हैगोया बंशी की तान है साग़र बेसबब आज हिंदी उर्दू मेंहो रही खींचतान है साग़र उर्दू को माँ कहो या तुम मौसीएक ही खानदान है साग़र मेरी ग़ज़लों में उर्दू के दम सेघुल…
उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हम
उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हम उनको मुहब्बतों में ख़ुदा कर चुके हैं हमअब अपनी मंज़िलों का पता कर चुके हैं हम इक बेवफ़ा को अपना ख़ुदा कर चुके हैं हमसब अपनी मंज़िलों को खफ़ा कर चुके हैं हम अपना ये दिल वतन पे फ़ना कर दिया है अबऔर जाँ लुटा के फ़र्ज़…
फालतू की राय
“पिताजी, मैं ग्रीन सिटी के बराबर में जहाँ पर प्लॉटिंग हो रही है, वहाँ एक प्लॉट लेना चाहता हूँ। आपकी इस बारे में क्या राय है? क्या मेरा वहाँ प्लॉट लेना ठीक रहेगा?”मोहित ने अपने एडवोकेट पिता नरेश जी के ऑफिस में घुसते हुए पूछा। “ठीक है। ले लो। कोई दिक्कत नहीं।”अपने वकील मित्र राजेश…
दिसंबर गुज़रा
दिसंबर गुज़रा तेरे वादे पे कहें क्या ऐ-सितमगर गुज़राराह तकते ही फ़कत अपना दिसम्बर गुज़रा जनवरी से ये नवम्बर का महीना है अबइतनी मुद्दत में इधर से न वो होकर गुज़रा काश वैसा ही गुज़र जाये महीना यह भीजितना रंगीन तेरे साथ सितम्बर गुज़रा शायरी करते हैं कहने को हज़ारों शायरमीर ग़ालिब सा न कोई…