दौर-ए-जदीद | Daur-e-Jadid
दौर-ए-जदीद
( Daur-e-jadid )
नफ़रत का दौर है न मुह़ब्बत का दौर है।
दौर-ए-जदीद सिर्फ़ सियासत का दौर है।
बातिल के साथ सैकड़ों, तन्हा है ह़क़ परस्त।
कैसे कहूं यह दौर सदाक़त का दौर है।
लहरा के क्यों न रक्खें क़दम वो ज़मीन पर।
यह ही तो उनकी नाज़ो नज़ाकत का दौर है।
जिस सम्त देखता हूं क़ज़ा है खड़ी हुई।
इक्कीसवीं सदी है,क़यामत का दौर है।
क्या लुत्फ़ आ रहे हैं बताऊं मैं किस तरह़।
पुर कैफ़ कितना उनकी इ़नायत का दौर है।
गर हमसफ़र हो तुम तो मिरी जां यक़ीं करो।
यह दौरे कश्मकश भी मुसर्रत का दौर है।
दिल को सुकून रूह़ को तस्कीन मिल गई।
वल्लाह क्या ह़ुज़ूर की क़ुर्बत का दौर है।
अ़ह्दे शबाब कहते हैं जिसको सभी फ़राज़।
वो दौर ही तो सच में इ़बादत का दौर है।
पीपलसानवी