वो घूंघट पट खोल रहा है
वो घूंघट पट खोल रहा है
वो घूंघट पट खोल रहा है
तन-मन मेरा डोल रहा है
आजा,आजा,आजा,आजा
मन का पंछी बोल रहा है
अपने नग़मों से वो मेरे
कानों में रस घोल रहा है
पाप समझता था जो इसको
वो भी अब कम तोल रहा है
मेरे घर की बर्बादी में
अपनों का भी रोल रहा है
लगते हैं वो सीधे लेकिन
बात में उनकी झोल रहा है
अच्छी चीज़ें हैं जो जग में।
उनका ऊंचा मोल रहा है।

पीपलसानवी
यह भी पढ़ें:-