ख़ुद को आवाज़ लगाकर देखें
ख़ुद को आवाज़ लगाकर देखें
ख़ुद को , आवाज़, लगाकर देखें ।
फिर से , ख़ुद को पाकर देखें ।
खोई हैं , जितनी मुस्कानें ।
जीवन में ,फिर लाकर देखें ।
गीत अधर से , छूट गए जो ।
उनको , गुनगुना कर देखें ।
अंतस में ,छाया जो अंधेरा ।
आओ उसे, मिटाकर देखें ।
टूटी हैं ,जितनी उम्मीदें ।
सब में ,जोड़ लगाकर देखें ।
बदकिस्मती ,भूलकर सारी ।
किस्मत को ,चमकाकर देखें ।
छोड़कर सारी , चिंताओं को ।
जीवन सुखी बिताकर देखें ।
वो जो ,हमको भूल चुके हैं ।
हम भी ,उन्हें भुलाकर देखें ।
खुद को , आवाज़ लगाकर देखें ।
श्रीमती प्रगति दत्त
अलीगढ़ उत्तर प्रदेश
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