नारी की वेदनाएं
नारी की वेदनाएं
नारी को हि बोझ अपना समझ रहे हो क्यों ?
गर्भ में हि कोख से उसे हटा रहे हो क्यों ?
निर्जन पथ पर बचा न पाती अस्मत नारी,
नोच रहे क्यों दानव बनकर नर बलात्कारी |
दासी मानकर चाहते हैं गुल्लामी उसकी,
कन्या को पूज कर चाहते हैं कृपा भी उसकी |
अशिक्षित हि चाहते हैं पालक भी रखना उसे,
चाहते हैं सभ्यता संस्कार का ज्ञान भी हो उसे |
जताकर प्यार उसे, हो रहे टुकड़े उसके,
कहो दिल थामकर, नारी नही घर किसके |
बना रखे हैं नारी को केवल भोग की वस्तु,
चाहते हैं कामना पर, देवी भी कहें तथास्तु |
हर रूप में अपने,आती है नारी हि काम सबके,
होती रहे अपमानित वही, तब क्यों हर नर से |
नारी जननी जगत की,वही पूज्य की प्रतीक,
तब भी निंदा उसी की, यह कर्म कितना घृणित् |
नारी हो या नर सदा, रखिये सब पर समदृष्टि,
दोनों हि पूरक सदा,इनसे हि निर्मित सृष्टि |
आनंदा आसवले, मुंबई
पत्ता: साईभक्ती चाल, रूम नं. 1, आनंद नगर, अप्पा पाड़ा,
कुरार विलेज, मालाड (पूर्व) मुंबई-400097
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