फिर वही बात!
फिर वही बात!

फिर वही बात!

( Phir Wahi Baat )

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फिर वही बात कर रही है वो,
चाहता जिसे भुलाना मैं था वो।
ले गई मुझे उस काल कोठरी में,
जिसे बांध गांठ , टांग आया था गठरी में।
जाने बात क्या हो गई है अचानक?
बार बार उसे ही दुहरा रही है,
मेरी इंद्रियां समझ नहीं पा रहीं हैं;
धड़कने रह रहकर बढ़ा रही है।
चुप कराने की कोशिशें बेकार हुईं,
सनक जब उस पे एक सवार हुई।
लगता है फिर कुछ अनहोनी होगी?
यह कहावत तो आपने भी सुनी होगी-
“जब काल आता है,
तो पहले विवेक मर जाता है।”
नुकसान भारी पहुंचाता है,
यूं कहें कि सर्वनाश ही कर जाता है।
फिर आदमी जीवन भर पछताता है,
चाहने के बावजूद कुछ नहीं कर पाता है।
बस इसी से डर रहा हूं,
कोशिश लगातार कर रहा हूं।
फिर वही बात न हो जाए!
दीया बुझने से पहले रात न हो जाए।

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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