खून पसीना यार निकलता रहता है
खून पसीना यार निकलता रहता है
खून पसीना यार निकलता रहता है
पैसों से बाज़ार उछलता रहता है
तुमने देखा है जिस उगते सूरज को
हमने देखा वो भी ढ़लता रहता है
रोते रहते बच्चे मेरे दाने को
और पतीला चूल्हा जलता रहता है
जश्न सियासी कूचों में होता रहता
बेबस औ मजदूर कुचलता रहता है
क्या उम्मीद लगायें अब हम इस जग से
मौसम सा जो रोज़ बदलता रहता है
इस जीवन की बस इतनी है सच्चाई
घर-घर देखो दुश्मन पलता रहता है
साथ प्रखर के कौन यहां है अब चलता
मतलब से हर कोई मिलता रहता है
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )