तेरे हुस्न पर कामरानी लुटा दी
तेरे हुस्न पर कामरानी लुटा दी
तेरे हुस्न पर कामरानी लुटा दी
बुलंदी की हर इक निशानी लुटा दी
ख़ुदा ने सँवारा सजाया चमन को
गुलों पे सभी मेहरबानी लुटा दी
फ़िजाओं में नफ़रत का विष घोल कर के
मुहब्बत की सारी कहानी लुटा दी
ख़ज़ाना किया सारा खाली उन्होंने
कि हासिल हुई राजधानी लुटा दी
करें रोज़ क़ुदरत से वो छेड़खानी
नदी की भी अब तो रवानी लुटा दी
ख़िज़ाँ लेके आये मेरी जीस्त में वो
कि ख़िदमत में रुत वो सुहानी लुटा दी
नहीं हुस्न का तेरे सानी जहाँ में
कि तुझपे ग़ज़ल की रवानी लुटा दी
मिले हैं फ़क़त ग़म ही ग़म देख मीना
तेरे प्यार में ज़िंदगानी लुटा दी
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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