अति

अति

“अति”

प्रत्येक अति बुराई का रूप धारण कर लेती है।
उचित की अति अनुचित हो जाती है।।

अति मीठे को कीड़ा खा जाता है।
अति स्नेह मति खराब कर देता है।।

अति मेल मिलाप से अवज्ञा होने लगती है।
बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।।

कानून का अति प्रयोग अत्याचार को जन्म देता हैं।
अमृत की अति होने पर वह विष बन जाता है।।

अत्यधिक रगड़ने पर चंदन से भी आग पैदा हो जाती है।
एक स्थान पर आकर गुण व अवगुण में बहुत कम दूरी रह जाती है।।

अति नम्रता में अति कपट छिपा रहता है।
अत्यधिक कसने से धागा टूट जाता है।।

अति कभी नहीं करनी चाहिए।
अति से सब जगह बचना चाहिए।।

Lata Sen

लता सेन

इंदौर ( मध्य प्रदेश )

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