पहेली
पहेली

पहेली

( Paheli)

 

जय विजय के बीच मे लो, मै पराजित हो गया।
सामने मंजिल थी मेरी , पर मै थक के सो गया।

 

अपनो पे विश्वास कर मै खुद ही खुद से ठग गया।
आँख जब मेरी खुली तब तक, लवारिस हो गया।

 

छोड करके जा चुके थे जो मेरे अपने रहे ।
जो बचे थे अब वहाँ वो नाम के अपने रहे ।

 

कुछ ने छोडा कुछ ने तोडा, कुछ का समझौता रहा।
कुछ पहेली बनके आये, जो नही अपने रहे ।

 

जिन्दगी का फलसफा टुकडो मे ही मुझको मिला।
इक मुक्मल प्यार था जो इक से न दो से मिला

 

एक यादों का भँवर है दूसरी अब जिन्दगी।
एक प्रीती की लहर सी, दूसरी प्रिया मंजरी।

 

शब्दों मे रम कर कही मनभाव न खुल जाये अब।
शेर मन किसमे है उलझा, जान न जाये ये सब।

 

इक पहेली जिन्दगी है, उसमे ही उलझे रहो।
हुंकार की कविता पढो , मदमस्त मन बहके रहो।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

??शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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