Teri Chahat ke Siva
Teri Chahat ke Siva

तेरी चाहत के सिवा

( Teri Chahat ke Siva )

 

कई काम हैं और भी जिंदगी में
तेरी चाहत के सिवा
वक्त की पेचीदगी ने सोचने की मोहलत ही दी कहाँ

आरजू तो थी बहुत
तेरी बाहों में सर रखने की
कमबख्त कभी तकदीर तो कभी
खामोशी भी दगा दे गई

तेरे आंचल से ही
तेरे बदन की खुशबू मिली
पास आना भी चाहे जब
जमाने की मुफ्लिसी मिली

गैर के होकर भी
अपने से लगती हो तुम
यह दस्तूर भी अजीब है
क्यों दिल की परी सी लगती हो तुम

बेवफा नहीं ,धोखा नहीं
चमन की खिलती हुई गुलाब सी हो
हमें ही आदत है नशे की
शायद इसीलिए शराब सी हो

पर यह नशा भी शबाब का नहीं
खयालों की मदहोशी का है
तेरा ही नाम तेरा ही चर्चा हो जुबान पर
खयाल तेरे हुनर की इसी गर्मजोशी का है

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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शब्द | Shabd

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