‘वाचाल’ की हरियाणवी कुंड़लियाँ
‘वाचाल’ की हरियाणवी कुंड़लियाँ
तड़कै म्हारे खेत में, घुस बेठ्या इक साँड़।
मक्का अर खरबूज की, फसल बणा दी राँड़।।
फसल बणा दी राँड़, साँड़ नै कौण भगावै।
खुरी खोद कै डुस्ट, भाज मारण नै आवै।।
फुफकारै बेढ़ाल़ भगावणिये पै भड़कै,
घुस्या मरखणा साँड़ खेत में तड़कै-तड़कै।।
बहुअड़ बोल्ली जेठ तै, लम्बा घूंघट काढ़।
दीदे क्यूँ मटकावता, मुँह में दाँत न जाढ़।।
मुँह में दाँत न जाढ़, भाड़ सा इह नै खोल्लै।
नचकइये की ढाल़, आइलू ईलू बोल्लै।।
पड़ें खोसड़े चार, सरम कर नीच पियक्कड़।
ले जूती नै हाथ, जेठ तै बोल्ली बहुअड़।।
खागड़ दो-दो आ बड़े, बनवारी के खेत।
गीहूँ जौ अर चणे की, फ़सल बणा दी रेत।।
फसल बणा दी रेत, रात भर घुल्लमघुल्ला।
रहे कबड्डी घाल, सवेरे खुल्लमखुल्ला।।
घणा करैं नुकसान, खेल कै आगड़बागड़।
रोवैं बेटे-बहू, खेत में घुसगे खागड़।।
देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा
खागड़ = Bull
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