ज़माना है ना!

( Zamana hai na )

 

हंसो यारो हंसो खुल के ,रुलाने को ज़माना है
करो बातें बुलंदी की ,गिराने को ज़माना है ॥

नहीं होगा कोई भी खुश ,ऊंचाई देख कर तेरी
गगन उन्मुक्त में उड़ लो, डिगाने को ज़माना है॥

लगाओ सेंध बाधाओं में, तोड़ो बेड़िआं सारी
निरंतर चल पड़ो,पीछे बिठाने को ज़माना है ॥

लगे बोझिल सभी कुछ जब ,कभी एकांत में बैठो
सुकूँ की सांस लेलो ,चैन खाने को ज़माना है ॥

सभी जो शौक हैं दिल में,उन्हें बाहर निकालो तुम
खुशी से लो गले तुम मिल, हटाने को ज़माना है ॥

तुम्हारी ज़िन्दगी तुम इक, दुबारा फिर न आएंगें
जिओ खुल के ,तरीके तो सिखाने को ज़माना है ॥

कभी बाहर निकल देखो, खुली धरती खुला अम्बर
ऊँचाई देख, नीचा तो दिखने को जमाना है ॥

कभी खुद को सराहो ना,सजो खुल के, संवारो तुम
निहारो खुद को, आइना दिखाने को ज़माना है ॥

कहेगी क्या, कहेगा क्या? तुम्हे परवाह क्यों करना
करो जो दिल करे, बातें बनाने को ज़माना है ॥

बताए गैर क्यों ,क्या है ज़हाँ में सख्सियत तेरी
हबीबी खुद से कर,इलज़ाम ढाने को ज़माना है ॥

करो विश्वास खुद पे, कुछ न कुछ तो खास है तुममे
बना पहचान तुम अपनी,मिटाने को ज़माना है ॥

ज़माने पे असर क्या है , कहो कुछ भी, करो कुछ भी
ज़माने से जमानत लो, फंँसाने को ज़माना है ॥

 

सुमन सिंह ‘याशी’

वास्को डा गामा,गोवा

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