Kavita | गुनाह
गुनाह
( Gunaah )
सद्भावों की पावन गंगा
सबके मन को भाए
वाणी के तीखे बाणों से
कोई घायल ना हो जाए
प्रेम के मोती रहा लुटाता
खता यही संसार में
कदम बढ़ाता फूंक फूंक कर
कहीं गुनाह ना हो जाए
कोई अपना रूठ ना जाए
रिश्तो के बाजार में
घूम रहा लेकर इकतारा
गीत ना खो जाए
बुलंद हौसला जोश जज्बा
पराक्रम दिखलाते
मां के लाल सजग सेनानी
विचलित ना हो पाते
सबको लेकर साथ चले जो
तूफानों वीरानों में
संबल देता उनको ईश्वर
कोई कदम डिगा ना पाए
जुर्म की दुनिया में कितने
गुनहगार भरे होंगे
रब से यही दुआ करता हूं
कोई गुनाह ना कर पाए
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )