Sad Ghazal | दिल से ही रोज़ आहें निकलती रही
दिल से ही रोज़ आहें निकलती रही
( Dil se hi roz aah nikalti rahi )
दिल से ही रोज़ आहें निकलती रही!
जीस्त यादों में उसकी गुजरती रही
कब मिला है ठिकाना ख़ुशी का कोई
जिंदगी रोज़ ग़म में भटकती रही
डूब रही है ये बेरोजगारी में ही
जिंदगी कब यहां तो संवरती रही
भर गयी है दामन नफ़रत के कांटों से
कब वही फ़ूल बनके बिखरती रही
नफ़रतों की बूंदे बरसी है रोज ही
प्यार की ही बूंदे कब बरसती रही
धुन में जिसकी डूबा प्यार की आज़म तो
रात भर पायल ऐसी खनकती रही
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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