आजकल!
( Aajkal )
ये कैसा आ गया है अज़ाब आजकल!
मुब्तिला तिरगी में आफताब आजकल!
शिनाख्त आदमी की मुश्किल है भीड़ में
फिरता है चेहरे पे लिए नकाब आजकल!
कांटे ही किया करते हैं फूलों की हिफाजत
कांटों से घिर गया है लो गुलाब आजकल!
बनती हैं फाइलों में सड़कें बड़ी बड़ी
बिखरे हैं राह में रस्ते खराब आजकल!
परिशा हैं हर बशर यहां हुकूमत के जुल्म से
उचक्को की है सियासत जनाब आजकल!
कभी रोटी है कभी रिश्तों की जद्दो- जेहद
ज़िंदगी का है यही लब्बो लुआब आजकल!!
शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236