भविष्यकर्ता
भविष्यकर्ता

भविष्यकर्ता

( Bhavishyakarta )

उनकी समझदार पत्नी में उन्हें पुनः समझाने का निरर्थक प्रयास करते हुये कहा “मन्त्री ने निमन्त्रण पत्र मतदाता सूची देख कर वितरित किये है।

जन प्रतिनिधियों की हर क्रिया सार्वजनिक होती है चाहे वह कितनी ही गुप्त क्यों न हो । तुम में ये ऐसी कोई विशेषता नही देखती जिसमें मन्त्री तुम्हें आमंत्रित करेे”

शिक्षक ने झिड़का “एक तो तुम उन्हें माननीय मन्त्री कह कर सम्बोधित करो । यही मंत्रियों को सम्बोधित करने की संवैधानिक भाषा है दूसरे मैं अब प्रधान पाठक हॅू अतः सामान्य शिक्षक नही रहा। मुझे आमंत्रित किये जाने के पूरे कारण उपस्थित हैै

वे हर बार पत्नि का कहना नही मानते और हर बार औंधे मंुह गिरते है। फिर लहूलूहान अहं के साथ हर बार पुनः गिरने के लिये उठ खडे़ होते है।

उन्हांेने एक आदर्श मध्यवर्गीय की तरह जूते चमकाये, स्कूटर पोछा, जेब में पचास रू. का बाहर दिखता हुआ लिफाफा रखा और  चल दिये सरकारी कर्तव्य पूरा करने।

जिस तरह दिल्ली के सारे रास्ते एक सफदरगंज की तरफ जाते है उसी तरह उस दिन सारे वाहन मन्त्री जी के बंगले की तरफ जा रहे थे ।

मंहगी कार वाले सस्ती कारो को देख कर हंस रहे थे, सस्ती कारे मोटर साईकिलों को देख कर हंस रही थी, मोटर साइकिले स्कूटरों को देख को हंस रही थी स्कूटर वाले पैदल चलने वालो को देख कर हंस रहे थे और पैदल चलने वाले रास्ते के कुत्तो को देख कर हंस रहे थे।

मन्त्री जी के जन्म दिन के रास्तों पर गोया हर सड़क पर कह कहानुमा माहौल था। गुरूजी के स्कूटर को एक मील पहले की रोक लिया गया । सस्ती करें एवं दुपहिया वाहनों को एक मील पहल ही पार्क करवा लिया गया ।

जो कुछ देर पहले पैदल चलने वालो पर हंस रहे थे मन्त्री की आभा मण्डल के पास स्वयं भी हंसी के पात्र बन गये। फाटक पर प्रवेश के लिए लम्बी पंक्ति लगी थी।

उनकी आदत विद्यार्थियों को पंक्तिबद्ध करने की थी अब स्वयं पंक्तिबद्ध होकर हताहत अनुभव कर रहे थे।

उन्हें आश्चर्य हुआ कि क्या चीटें भी पंक्तिवद्ध चलने में उतनी ही कुंठा अनुभव करने होंगे जितना कि वे कर रहे थे।

फाटक पर निमन्त्रण पत्रों के प्रकार के अनुसार अलग अलग दरवाजों से प्रवेश दिया जा रहा था चूंकि उनका निमन्त्रण पत्र तृतीय श्रेणी का था अतः उन्हे सीधे ही मन्त्री से बगैर मिलवाये भोजशाला में भिजवा दिया गया।

उन्होने बुझे मन से पचास रूपये वाला एक अमूल्य लिफाफा भेंटासन्दी (भेंट $आसान्दी) को दे दिया । पर वह अपना नाम लिखवाना नहीं भूले ।

उनकी श्रेणी के कुछ लोग मन्त्री के नाम का चेक इस आशा से लेकर आये थे कि मन्त्री पचास रूपये के चेक का क्या नगदीकरण करवायेगा । पर पन्द्रह दिन बाद जब उनके स्काउंट से पचास रूपये कम हो गये तब उन्हे ऐस लगा जैसा किसी छोटे ठग को बढ़े ठग ने ठग लिया हो।

उस गिद्ध भोज में गिद्ध भोज जैसा ही वातावरण था। उन्हे इस बात की हताशा थी कि उन्हंे मन्त्री से मिलने नहीं दिया गया । हर बार उनके साथ ऐसा ही होता है ।

तब वे जगन्नाथ पुरी गये थे तब भगवान जी के पट बन्द थे । जब वे वैष्णौ देवी गये थे तो जोर का एक धक्का लगा और बगैर दर्शन के बाहर हो गये । उनके भाग्य में केवल आना जाना और खर्च करना ही आता है। दर्शन किसी और को हो जाते है।

मगर लगता है इस बार भाग्य उन पर मुस्कुरा रहा था । किसी ने उनके “प्लेट” लेने के पहले ही पानी भरे ग्लिासों की ट्रे थमा दी और कहा मन्त्री जी पानी मंगा रहे है।

गदगदायमान होकर गुरूजी मन्त्री को जल प्रस्तुत करने चले गये। मन्त्री जी ने नये आदमी से प्रस्तुत किये जाने पर जल संकट दृष्टि से देखा और निज सहायक से पूछा बंगले में यह नया नौकर कौन है ?

निज सहायक ने परिचय दिया ये बरारीपुरा प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक है।  “अहा हमारा देश प्रचीन काल से विश्व गुरू रहा है। हमें पुनः वही दर्जा हासिल करना है।

हमारे शिक्षको पर नई पीढ़ी के निर्माण का गुरूतर दायित्व है। आपको यह उत्तरदायित्व निभाना है।” मन्त्री ने रटा रटाया भाषण उगला गुरूजी ने सोचा कि इन्होंने कई श्रेणियों के गुरू बना दिये है।

जैसे शिक्षा कर्मी संविदा शिक्षक, प्रौढ़ शिक्षक, नियमित शिक्षक आदि। अब मालूम नहीं किस श्रेणी के गुरू को देश का भविष्य उज्जवल बनाना है। प्रकट में वह केवल हिनहिना दिये। इससे अधिक का अधिकार उन्हे सेवा नियमों ने नहीं दिया था।

बाजू का एक चमचा बोला “मास्टर मेरे पास करीबी” दस बारह बच्चों के रोल नम्बर है जिनका भविष्य तुम्हे उज्जवल बनाना है। उन सबका कम से कम नब्बे प्रतिशत से ऊपर का उत्जवल भविष्य होना चाहिये।

गुरूजी आकंठ कृतज्ञ हो गये। उन्हें प्रसन्नता हुई कि मन्त्री के किसी बाजू में उन्हे उपयोगी समझा। उन्होंने जवाब दिया “आप जिनके रोल नम्बर मुझे देने वाले है वे जरूर मेघावी छात्र होंगें।

बल्कि मैं ऐसा करता हॅू कि उनकी उत्तर पुस्तिका ही आपके पास पहंुचा देता हॅू आप ही उन्हें अंक दे दीजिएगा।”

गुरूजी वापिसी में कुप्पायमान हो रहे थे । उनके साथी गुरूजी उन्हे ईष्या से देखने लगे जैसे उनके नाम की कोई लाटरी से बड़ी चीज खुल गई हो ।

माननीय चमचा के माध्यम से माननीय मन्त्री जी प्रसन्नाभवत। छुटभय्ये जी फिर बोले “और देखो बीस पच्चीस कीडा प्रमाण पत्र वाद विवाद प्रतियोगिता प्रमाण पत्र, सांस्कृतिक प्रमाण पत्र भी भिजवा देना”  सुना है नौकरी के समय बहुत काम आते है।

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लेखक : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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