Kavita | नींद
नींद
( Neend )
आंधी आई काले बादल
घिर घिर कर आने लगे
कहर कोरोना बरस पड़ा
खतरों के मेघ मंडराने लगे
रह रह कर डर सता रहा
आंखों की नींद उड़ाने को
यह कैसी लहर चल पड़ी
कैसा मंजर दिखाने को
सड़कों पर सन्नाटा छाया
नींद हराम हुई सबकी
कालचक्र की करवट से
जाने फिजाएं क्यों बहकी
सिर पर मौत का तांडव हो
तो नींद भला कैसे आए
कैसे कोई सुख से सोए
भरपेट भोजन कर पाए
दुख की घड़ी में मिलकर
सबको संयम अपनाना है
सावधानी रखकर पूरी
सबकी जान बचाना है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )