मैं कविता की हूंकारो से | Kavita
मैं कविता की हूंकारो से
( Main kavita ki hunkaro se )
मैं कविता की हूंकारो से, गगन उठाया करता हूं।
सोया सिंह जंगल का राजा, शेर जगाया करता हूं।
मात पिता गुरु की सेवा का, धर्म बताया करता हूं।
अतिथि देवन हमारे, सम्मान जताया करता हूं।
शब्दाक्षर से अल्फाजों में, जोश जगाया करता हूं।
खुशबूओं सी महकती, मस्त बयार गाया करता हूं।
वाणी का आराधक बन, दीप जलाया करता हूं।
मन मंदिर में पूजन का, थाल सजाया करता हूं।
दीन हीन राहों में मिलते, गले लगाया करता हूं।
मनमौजी दुर्गम पथ पर, भाव सजाया करता हूं।
सिंधु की लहरों से मन में, उमंग जगाया करता हूं।
पावन गंगा धारा सी, कविता मैं गाया करता हूं।
कब आएंगे राम हमारे, मैं राह सजाया करता हूं।
सुंदर शब्द सुमन लेकर, पथ में बिछाया करता हूं।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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